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[દિશાબતસ્મારિકા કી કુછ સમીક્ષા
अन शासन (8418)* ११3* २६/२७*ता. २७-२-२००१ कुछ ही नहीं, फिर भी प्रधानता पुरुष की ही रहेगी । यदि स्त्री की | लिखे कहे जाने वालों की भी बुद्धि नहीं पहुँच सकती इसलिा शास्त्रकारों KC प्रधानत हुई तो उपाधि का पार भी नहीं रहेगा। लज्जा और मर्यादा | पर अपनी तुच्छता का आरोप किया जाता है। शास्त्रकार को समझ 5 पुरुष में या स्त्री में ? स्त्री यदि पुरुष जैसी अमर्यादित बनेगी, तो | न सको तो अपनी बुद्धि की मन्दता समझो परन्तु शाकारों को
घर-घरबदनाम होंगे। नाटक देखने पुरुष अकेले जाता है, परन्तु स्त्री पक्षपात करने वाले मत कहो । मार्गानुसारी भी शास्त्रका ों को झूठा हस अकेला नहीं जाती, पुरुष ले जाय तो जाती है।
नहीं कहता वह कहता है “शास्त्रं गहनं मतिरत्तपा' शस्त्र गहन है । प्रश्न : अब तो अकेली भी जाती है ?
। मति अल्प है। कानून शास्त्रीयों के कानून बनाने में भूल हो सकती उत्तर जाती है तो उसके पति को पूछ लो कि - यह हृदय से दुःखी | है क्योकि ये अधूरे ज्ञानी हैं परन्तु सर्वज्ञ परमात्मा के बाये कानून है या नहीं ? यह सब पक्षपात कहने वालों को पूछो तो सही। जितनी शास्त्रों में भूल नहीं हो सकती। फिर भी पक्षपात है ऐसा रहने वालों स्त्री इस तरह स्वच्छन्दी बनी, तो भी क्या स्त्री ने दुकान लगाई या पुरुष को शर्म आनी चाहिए। फिर भी शर्म नहीं आती उस में कर्म की ने लगा?
कठिनता यह कारण है। यह सब बातें भयंकर हैं, ज्यादा बोलना अच्छा नहीं, इशारे में स्त्री तो मोक्ष के द्वार बन्द करने में अर्गला जैसी है, काम की समझो तो ठीक, नहीं तो मूर्ख में गिने जाओगे, संसारी को तो यह आसक्ति को पैदा करने वाली है, बन्धुओं के स्नेहरुप वृक्ष को जला अनुभव है न ? परन्तु संसारियों को यह समझाना पड़ता है इसका देने के लिए दावानल समान है। कलह की कलिवृक्ष जैस है, दुर्गति (M कारण विषयवासना बढ़ रही है। आपकी तरह स्त्री भी जहाँ तहाँ के द्वार खोलने की चाबी है और धर्मरुप धन की चोरी करने वाली आंख कती बन जाये तो सुख से पुरुष खा भी नहीं सकेगा। एक चोट्टी है और अनके प्रकार की विपत्तियों को करने वाली है। वैसी पुरुष हजारों स्त्री को पाल सकता है एक राजा महाराजा हजारों राणी स्त्री पुरुष का मिलन भी धर्म हैं। ऐसा कहना तो वास्तव में अग्नि में को बर वर संभाल सकता है परन्तु एक स्त्री दो पति को नहीं संभाल घी की आहुति के समान हैं। वास्तव में विषय-वासना ढ़ गई है। सकती स्त्री के और पुरुष के स्वभाव में ही अन्तर (फर्क) है। पुरुष यह कारण है 'स्त्री पुरुष का मिलन भी धर्म है' -यह कथन भी की क्रूरता भयंकर है यह बात सही, परन्तु स्त्री क्रूर न हो तब तक देवी वास्तव में मुग्धों को ही पागल बनाने वाला है। और याद क्रूर हुई तो बाद में महाभयंकर है। बाद में क्या करेगी वह
प्रकाशक - शासनरक्षक संघ, तंपावास IG नहीं कर सकते।
जालोर ( राजस्थान) स्त्री नाम की जाति नहीं होती तो सब पुरुष मोक्ष में चले गये
रंगतरंग ? होते । पुरुष के पुरुषत्व का नाश करने वाली स्त्री है। स्त्री गुफा बिना की वाण है, स्त्री भूमि बिना की विषलता है । स्त्री नाम बिना की
ગેંડાલાલે લાલઘુમ થતાં કહ્યું, ‘જોયો મારા એ व्याधि, स्त्री बिना कारण की मौत है। दुनिया के उपद्रव है यह इसी હિરામખોર પાડોશીને, સાલ્લો મને કહે કે મુરખ બુટ્ટો !' ? काही भाव है। सब पाप की जड़ स्त्री संग्रह है। स्त्री संग्रह करने पर
‘પાગલ છે સાલ્લો !' ગરબડલાલે લાસો ही पैंसो की जरुरत पड़ती है। उसके लिए कई पाप करते हैं। महर्षियों
આપતાં કહ્યું, ‘એ જાણતો નથી કેdહજુ તો માંડ બોતેર
वरसनोथयोछ!' *** को धर्म से गिराया तो स्त्रियों ने ही न ? चाहे जैसों का स्खलित करने
એક નેતાજી પાગલખાનામાં ગયા. એમણો ? का अंतिम साधन यह ।
પૂછયું, 'તમને ખબર કેવી રીતે પડે છે કે પાગલ સારો स्त्री भोग्य है, भोग्य पदार्थ की अधिकता होती है। राज्य का
थगयो.' मालिक एक ही होता है, राज्य हजारों गांव का, परन्तु उन भोग्य का __त्यारे ४वाज भन्यो : 'सेना भाटे पाणीनो 12 राजा भोक्ता तो एक ही । भोक्ता एक होता है, भोग्य अनेक होते નળ અને એની નીચે રાખેલા ટબનો ઉપયોગ हैं। थोड़ी सी बुद्धि का उपयोग नहीं करो तो समझेंगे कैसे?
કરવામાં આવે છે.' भोग्य में जो माना जाता है वह ही मान सकते हैं। लक्ष्मी हो
'रीते?' 'पागलनेमहीलाववासावे ? तो लक्षीवान्, परन्तु मालिक लक्ष्मी को क्यों नहीं कही?
છે, અને એને એવું કહેવામાં આવે છે કે આ ટo ખાલી
કરવાનું છે. જે પાગલસારો થઇ ગયો હોય એ પહેલા दरिद्री को दो लाख मिले तो भी वह लाख को मेरे कहता है,
नगने लंधरी!' 5 परन्तु का स्वयं ऐसा नहीं कहता। इस गहनता को आज के पढ़े