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જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. __भो महाशयो ! जागृत हो, जमाना जाता है. गया समय हात नहीं आता फिर कब करोगे?
॥ दोहा.॥ कालकरेसो आजकर, आजकरेसो अव ।।
समय विदीता जातहै, फिरकरेगा कब ॥१॥ इत्यलं ताजे कलम-आजकल जैन लोग जो तिथि मानते हे वह अन्य पंचांगके आधार पर है. सबाल पेदा होता है अन्य पंचांग सच्च हे इसका निर्णय आप लोगोने कीया है ? जवाबमे यही कहेगे, निर्णयतो नहीं करा देखा देखी मानते है. फिर सवाल उठता है. जब तिथिका क्षय आया, जैसे आठम चौदशका; अन्य पंचांगमें क्षय आया. तब क्या करोगे ! जवाबमें यही कहना होगा पूर्व तिथिको क्षय करके पर्व तिथि कायम रखेंगे. और यहाभ कहोगे उदय तिथि मानेगे.
यह बात कहने मात्र है परंतु गणितागत नहीं. अब देखिये अन्य पंचांगमें. जो तिथि क्षय होती है उसकी पहलि तिथि की घडिया पल कुछ अंश बाकी जुरूर रहती है. सूर्योदय समय बाद क्षय तिथि लगती है. अब आपकी सूर्योदय तिथि जो मानते हो वह कहां रही दाखला जैसे तिथि ७ दोघडी या १ घडि या ३० पल है उसके बाद अष्टमी ८ मी क्षय तिथिकी घडिया लगी. दुसरे दिन नवमी आगइ. अब उदयात् अष्टमी मानते हो वह कहां रही ? सिर्फ मनसेही अपना पर्व कायम रखना पडता है. गणितसे नहीं सबूत पाया जाता है. ऐसेही जैन पंचांगमभि गणितागतसे सब तिथियोंका क्षय माना जाता है. वहांपरभि मनसेही मानना पडेगा. परंच घरकी बातपरतो विश्वास नही और दूसरेकी बातपर विश्वास रखते है. बडे अफशोषकी बात है वहांतो कहेंगे. पर्व तिथि जैनमें क्षय नही होती परंच गणितागतसे. कोई महाशय निर्णय नहि करता. सच्च बाततो यह है. जैनमें व्रत नियम सूर्यकी साक्षीसे होतेहै. उस बखत कोई तिथि हो-चंद्र तिथि हो या न हो. परंच सूर्य तिथि जरूर लेना चाहिये.