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________________ જૈન જ્યોતિષ. ૫૬૩ थक जावे तो पिछाही हटे. परंतु आगे नहीं बढे. गणितसे सब तिथियोका क्षय जैन पंचांगमे तथा अन्य पंचांगमें एकसा माना गया है-वृद्धिमे फर्क है. अन्य पंचांगमे वृद्धि मानी गई है। जैनमें नहीं. अमर चंद्रकृत तिथिसे धर्म पर्व माना जावे तो जब तिथिका प्रवेश हो उस वख्त धर्मकृत्य शुरुकरे और तिथि उत्तरने पर समाप्त करे-ऐसा करते नहीं और खाली तिथिका पक्षकरे भो महाशयो कुछ सुक्ष्म दृष्टिसे विचारतो करे. अपन तिथि २ पूकारते हैं. परंच वृतादिक कायेतो सूर्यके आधारसे करते हैं. इसीसे ज्ञानियोने फरमाया की सूर्यकृत दिवसमे कोई फर्क नहीं तिथिमे फर्क है. दिनमान ज्यादे कमती होना सूर्यके मंडलोसे पाया जाता है मगर चंद्र मंडलभी साथ लगा हुवा है. प्रत्येक सूर्याऽध मंडलके ६१ भागको आरोहण करता रहता है. दिनमान संभूतला पृथिवि परतो १२ बारा मुहूर्तसे पाकर यानि मकरसंक्रांतिसे बढता २ अठारा १८ मुहूर्त कर्क संक्रांति तक परम होता है. और रात्रि अठारा मुहूर्तसे घटतां २ बारा मुहुर्त कर्क संक्रांति तक जघन्य होती है. ऐसेही कर्क संक्रांतिसे दिन घटता २ मकर पर्यंत १२ मुहूर्त जघन्य होता है और रात्रि १२ से बढती २ उत्कृष्ट मकरतक १८ मुहूर्ती होती है. क्षेत्रांतरमे दिनमान ऐकसा नहि होता है. प्रत्येक अस्त एक सरीखे नही होते. जिस क्षेत्रमें जितने घटिका दिनमान हो, उतनेही हिसाबसे चंद्र तिथिका संघटन समजो मगर चंद्रका संबंध दिन रात्रिके साथ लगा हुवा है. ऐसे तिथिका निर्णय जैसा देखा वैसा बतलाया. ज्ञानियोके ज्ञानका पार नहीं एकसे एक ज्यादह दुनियामे इल्मदार है. इस विषयमें जिस किसी महाशयोके पास उल्लेख हो व जाहिर कर जैन ज्योतिष विद्याको पुष्ट करे ताके खास और आमको फायदेमंद हो. जैन पंचांग की जैनोमें बहुत खामी है. अगर कोई माहनत करे तो मदत देनेवाले नहीं मिले-जबहीतो यह विद्या लुप्त हो रही है. इसको जाहिर लानेकी बहुत जरुरत है. .. अगर एक सक्ष नहीं कर सके तो अनेक सक्ष मिलके एक संस्था (जैन ज्योतिष विद्या प्रकाशक सभा ) नाम स्थापन करके पंडितो द्वारा जैन ज्योतिष ग्रंथोको संशोधन कराके छपवाये जावे और जैन गणित क्रियाको.ज्योतिष शाला स्थापन कर विद्यार्थि द्वारा प्रकाश कोइ जाचे तो तमामको फायदेमंद हो और मालूमभी हो की जैनमें ज्योतिष विद्याका ज्ञान है. अभितक लोगोकुं यह मालुम है की जैनमे उक्त विद्याही नही. मे उम्मेद करता हूं की इस विद्याको जैनी भाइयो प्रगट करनेमे सहायक होकर अपने समकितका पुष्ट करेंगे, और जैन ज्योतिष विद्याका विजय बावटा भारतमे फूरोवेगे.
SR No.536608
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1912 12 Pustak 09 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1912
Total Pages32
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size3 MB
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