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________________ ૫૬૨ જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. जुगंमि नायव्वा ॥ तुथ्थच अहोरत्ता तीसा अद्वारससयाओ ५५॥ इतिज्ञेयं. इस हिसाबसे तिथि निर्णय हुई-अब धर्म कृत्य किस आधारसे करणा कहा सो दिखलाते है-तिथिके आधारसे-या दिवसके आधारसे प्रतिष्टा उद्यापन-यात्रा वगेराको छोडकर-तपस्यादिक वृत नियमोका करणा दिवसके याने सूर्योदयके आधारसे जैनमै मानागया है. यह बात जगत् जाहिर है और जैन शास्त्रोमेंमि हरजगह प्रमाण दिया गया है. इसपर एक भाषाकार कविने कहा है. ( जिण तिथिमांहि सुरउगमेंतेहिज दिन अहनिशि. संक्रमे. उदयिक तिथि ते करौ प्रमाण, मूल सूत्र छ एहनोठाण ॥१॥ औरभि देखिये. प्रत्याख्यान भाष्यमे ) उग्गयेसूरे-या सुरे उग्गे-नमुकारस० वगेरा पाठ प्रमाण रखागया है. इससे सबूत हुवा. तपस्यादिक वृत्ते करणा मूर्यके आधारसे है और प्रवर्तिभि. यही चल रही है. चंद्रकृत तिथिके आधारसे तो उक्त क्रिया करना शास्त्रकारोने नहीं फरमाया. अगर फरमाया होता तो. 'चंदेउग्गे' ऐसापाठ होता सो हे नही. और ज्योतिष्करंडक पपन्ना ग्रंथमे गणिता गत्तसेसब तिथियोंका क्षय होना दिखलाया है. वृद्धि नही दिखलाई. बहुत गोर.करणेकी जमह है, जब कोई पर्व तिथि. २।५।८॥ ११॥ १४॥ १५ और अमावासका क्षय आता है, तब गच्छाचारोमे बडाही बखेडा होता है. कोई पूर्व तिथिको क्षयकर धर्म पर्व कायम करते है. कोइ.. उत्तर तिथिको क्षय कर कायम करते है परंच गणित्तागतसे किसीने न' दिखलाया. ऐसाही अधिक मासके बारेमें टंटा चलता है. बुद्धिमानोको तटस्थ होकर समालोचना करना चाहिये । की इयह आंदोलन कबसे चला. दीर्घदृष्टीसे देखा गया तो मेरे खयालमे यह आयाकी. जैन ज्योतिष विद्या ( पंचांग ) की गणित कला लूप्त होनेसे अन्य मतियोका पंचांग मानने लगे तबसे यह टंटा चला. और उसपर दृढ विश्वास करणे सें असली निज वस्तुको खो बैठे. खेर, अब तिथिके और पर्वके विषयमें खयाल करते होतो यह मालुम होता है कि, जब सूर्यकृत दिनसे धर्मकृत्य करणा तीर्थकर गणधरोने फरमाया तो. चंद्रकृत तिथिसे हमें क्या जरुरत है-जिसवख्त सुर्योदयमें जो. तिथि आई वह दिनभर मानना हमारी फर्ज है. अब गणितसे जब ८ । १४ तिथिका क्षय आया तो धर्म पर्व कब करणा-इसपर विचार करते है तो सूर्यकृत दिवसही-प्रधान माना जाता है. इस लिये तिथिके आधारसे धर्म पर्व नहीं. किंतु सूर्यके (दिनके ) आधारसे है. ८ । १४ का क्षय होतो ७ । १३ का क्षय समजके ८।१४ पर्व स्थिर रखना मुनासिव है. न्यायाभि है की चलता हुवा मनुष्य
SR No.536608
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1912 12 Pustak 09 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1912
Total Pages32
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size3 MB
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