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________________ ६२ । ११ मी जैन श्वेतांबर परिषद्. अनुमोदक-रा. रा. मूलचन्द आशाराम वेराटी अमदावाद । विशेष अनुमोदन-पण्डित हंसराजजी। (१७) जीव दया। ___“ अहिंसा परमोधर्म यतो धर्मस्ततोजयः।" अपने लोगोंका यही सर्वोपयोगी प्रथम सिद्धान्त है, इसलिये यह कान्फरन्स आजके इस अधिवेशनमें समस्त समुपस्थित दयाल सज्जनोंसे इसी सिद्धान्तको अधिक मजबूती से यथेष्टरूपमें फैलानेकी आन्तरिक प्रार्थना करती है और इसके संप्रसारके लिये नीचे लिखे उपाय निवेदन करती है। १। समस्त जीवोंकी रक्षा करने और उनके हिंसा रोकनेका योग्य प्रयत्न करना। ____२ । पिंजरापोलमें, पिंजरापोलोंके कार्यवाहकोंकी बेदरकारी में जो मुंगे प्राणियोंको दुःख सहन करना पड़ता है, उसके मिटानेका बन्दोबस्त करना। ३। मनुष्यकी खुराक और धर्मके नामसे होता हुवा पशुबध और फैशन वगैरहके लिये जूदी जूदी रीतिसे जो निरपराधी और मुंगे प्राणियोंके उपर कसाईपना गुजरता है उसके उनको बचानेका प्रयत्न करना। ४। जानवरोंके शारीरिक अवयवोंसे निर्मित चीजें कचकड़ेके पदार्थ और पंख लोमचर्म वगैरहको छोड़कर उनके बदलेमें निर्दोष वस्तुओंको काममे लाना चाहिये। ५। खास कलकत्तेमें आम और बंगाल पंजाब इत्यादि प्रान्तोंके शहरोंमें आम रास्तोंपर कसायोंकी दुकानोंमें खुले हुए वध किये हुये जानवरोंका कलेवर लटकते रहते हैं इससे खास कर जैनियोंके चित्तको अत्यन्त क्लेश होता है और आम लोगोंकी तन्दुरस्ती को हानि पहुंचती है इस लिये वो दुकाने आम रस्तोंसे हटा देनेको यह कान्फरन्स बंगालके गवर्नर साहब और दूसरे प्रांतोंके उपरी अधिकारिओं तथा शहेरोंको म्युनिसिपालीटीके चेयरमैनोंसे निवेदन करती है। इस कार्यके सम्बन्धमें धुलियाकी श्री प्राणीरक्षक संस्था ने जो दरखास्त की है उनको यह कान्फरन्स सम्मत है और अन्य मंडलो जो कार्य कररहा है उसको यह कान्फरन्स धन्यवाद देती है। इस प्रस्तावकी नकलें जूदे जूदे शहरोंकी म्युनिसिपालीटीका चेयरमेन और
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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