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________________ सभापति शेठ खेतशीभाईका व्याख्यान. आधार दिलाकर उनका अभ्यास आगे बढ़ानेके योग्य व्यवस्था करनेवाली संस्थाओंकी यह कान्फरन्स खास जरूरत समझती है. ४। उपस्थित समयानुकूल अपनी जैन कौमका उच्च व्यापारिक दर्जा बनाये रखनेके लिये अपने धर्ममें हाति न पहुँचे ऐसे उपायोंको ओर यह कान्फरन्स प्रत्येक जनोंका ध्यान आकर्षित करती है। ५। समस्त जैनियोंका यह खास फर्ज है कि जो जो उचित रोजगार अपने हायमें है उनको पाश्चात्य व्यापार शैलिका अनुकरण करके दिन प्रतिदिन बढ़ानेकी चेष्ठा करें और जैन युवकों को शिक्षा देनेके अभिप्रायसे उनको अपने व्यापारमें शामिल करके होशियार करें। ____६। हुनर और कलामें आगे बढ़े हुए पाश्चात्य देशका अनुकरण करके देशमें शिल्पकी प्रगति करनेके लिये नये नये उद्योग, कारखानाने और हुनरके स्कुल खोलकर उनमें जहां तक हो सके अधिक प्रमाणमें जैन युवकोंको दाखिल करें जिसमें बे लाभ उठा शके ऐसा कान्फरन्स खास जरूरत समझती है। दरखास्त-रा. रा. हीराचन्द लीलाधर झवेरी जामनगर । अनुमोदक-बावु दयालचन्दजी जोहरी. आग्रा। विशेष अनुमोदन-रा. रा. जीवराज देवजी मोता मुंबई । (१६) श्री सुकृत भंडार फंड. यह कान्फरन्स दृढता और आग्रहके साथ अपील करती है कि प्रत्येक वर्ष हर एक श्रावक और श्राविकाओं को कमसे कम चार आने श्री सुकृत भंडारमें देना चाहिये क्योंकि इस फंडके उपर कान्फरन्सकी जिन्दगी और कान्फरन्सके आरम्भ किये हुए कार्य निर्भर है। ___ (२) जिन जिन स्थानोंके संघोने यह फंड इकट्ठा कर कानफ्रेन्स आफिसमें . भेजनेकां परिश्रम उठाया है उन सबोंका यह कान्फ्रेन्स उपकार मानती है। __ (३) अपने अपने गांवोंसे सं० १९७४ का श्री सुकृत भण्डार फण्ड इकट्ठा करके जितना शीघ्र हो सके कान्फ्रेन्सकी हेड आफिस बब्मई में भेजनेकी विनती . यह कान्फ्रेन्स प्रत्येक ऐसे ग्रामों और शहरोंके संघोसे करती है और जिन शहरोंमें इस फण्डका प्रारम्भ अभीतक नहीं हुआ हो वहां शीघ्र प्रयास करनेके लिये वह कानफ्रेन्स वहांके अग्रेसर भाइयोंसे सूचना करती है। दरखास्त-शेठ लालभाई कल्याणभाई. वडोदरा।
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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