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________________ सभापति शेठ खेतशीभाईका व्याख्यान. रत है और इस विषयमें अधिक प्रयास करनेकी आवश्यकता समझती है । (३) जैनियोंकी पाठशाना और विद्याशालाओंमें प्राकृत भाषाका खास शिक्षण देनेके लिये प्रबन्ध करनेकी यह कान्फ्रेन्स उनके कार्यवाहकोंसे मूचना करती है। (४) हिन्दुस्थानकी जुदी जुदी युनिवर्सिटियोंमें प्राकृत भाषा दूसरी भापाके समान जैन विद्यार्थी भी ले सके इसका जैन विद्वान और संस्थाओंसे यह कान्फ्रेन्स उद्योग करनेका अनुरोध करती है ओर कलकत्ता यूनिवर्सिटीने प्राकृत भाषाको अपने पठनक्रममें दाखिल करके उपकार किया है उसके वास्ते यह कानफ्रेन्स उपगार मानती है और दूसरी यूनिवर्सिटीओंको भी उसका अनुकरण करनेका अनुरोध करती है और इस प्रस्तावकी नकल जाहिर पत्रोंमें छपवा दी जाय और उसकी एक नकल कलकत्ता यूनिवर्सिटीके और दूसरी यूनिवर्सिटीओंके संचालकोंके पास भेज दी जाय। दरखास्त-पण्डित हरगोविन्ददास कलकत्ता । अनुमोदक-रा. रा, मनसुखलाल रवजीभाई मुंबई । विः ,,-पण्डित जलालजी बनारस । (७) जैन साहित्य प्रचार । १। जैन सिद्धान्त प्रसिद्ध करने तथा जैन साहित्यका प्रचार करनेके लिये जो अपने पूज्य मुनिराज श्री तथा पुस्तक प्रकाशक संस्था और विद्वान लोग प्रयत्न कर रहे हैं, उसके लिये यह कान्फ्रेन्स हार्दिक सन्तोष प्रकाश करती है और उनकी सेवामें आग्रह पूर्वक प्रार्थना करती है कि “ सस्ता साहित्य " बढ़ानेके लिये ऐसी व्यवस्था की जाय कि जिसमें जैन साहित्यका और भी विशेष प्रचार हो। २ । नैनियोंका प्रसिद्ध और अत्युत्तम प्राचीन साहित्य जिन जिन भण्डारोंमें बन्द करके रक्खा हुआ है उनमेंसे निकलवाकर जिसमें उस साहित्यका लाभ मानव समाज उठा सके ऐसी शीघ्र चेष्टा करनी चाहिये, उन ग्रन्थोंके नष्ट हो जानेके पहिले ही यह कान्फ्रेन्स समयानुकूल प्रार्थना करती है और आशा रखती है कि वह शीघ्र हो छपवा कर प्रकाशित कर दिया जाय । पाटण, जैसलमेर, खम्भात, अहमदाबाद और लींबड़ी वगैरह स्थानोंके भण्डारोंके कार्यवाहकोंका ध्यान इस विषय पर खास करके आकर्षित किया जाता है । प्राचीन जैन साहि
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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