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________________ ك يكة عيد ५४ ११ मी जैन श्वेतांबर परिषद्. बाबु राय कुमार सिंहजी ,, बहादुरसिंहजी सिंघी. ,, निहालचंदजी राजा सत्यानंद प्रसाद सिंह शेठ नागजीभाई गणपत ... रा. रा. मकनजी जे. म्हेना बारीस्टर. , रामचंद जेठाभाई , मोतीचंद गिरधरलाल कापडिआ. सोलीसीटर ,, जेवंतमलजी रामपुरीया. मोहनलाल दलीचंद देसाई. वकील. (५) धार्मिक शिक्षा। ___ यह कान्फ्रेन्स अपने समाजमें धर्मशिक्षा के लिये विशेष अभाव अनुभव करती है और धर्मकी पुष्टि और विस्तारके लिये धर्मशिक्षाकी आवश्यकता समझती है । कान्फ्रेन्स नीचे लिखे उपायोंको कार्यमें परिणत करनेका समस्त श्वेताम्बर जैनियोंसे विनम्र निवेदन करती है। ___(१) प्रत्येक ग्राम और नगरमें धर्मशिक्षाके लिये पाठशालाए पुस्तकालय आदि स्थापित और उसके कार्यनिर्वाहकी सुव्यवस्था होनी चाहिये । - (२) धार्मिक शिक्षाके लिये प्राकृत या संस्कृत ग्रन्थोंका सरल भाषामें अर्थ सहित प्रकाश करनेका प्रबन्ध होना चाहिये । (३) धार्मिक शिक्षाके लिये सुयोग्य शिक्षक और शिक्षियित्रीकी विशेष आवश्यकता है इस कारण जैन युवकोंको और स्त्रियोंको उच्च संस्कृत और प्राकृत . शिक्षा देनेका प्रबन्ध होना चाहिये । - दरखास्त-शेठ अमरचंद घेलाभाई भावनगर । अनुमोदक-पण्डित हंसराजजी अमृतसर । विः अनुमोदक-रा. रा. हीराचन्द लीलाधर झवेरी जामनगर । , ,, -,, अमृतलाल भावजी शाह. कलकत्ता । (६) प्राकृत भाषाका उद्धार। . अपने शास्त्रोंकी भाषा प्रायः मागधी होनेके कारण उसकी शिक्षाकी आवश्यकता है और उसकी रक्षा करनेकी भी खास जरुरत है। (१) प्राकृत भाषाका सरल अभ्यासके लिये जो कोप तैयार करानेका विचार किया गया है उसकों कार्यमें परिणत करनेके लिए वह कोष जल्दी प्रकाशित करानेकी यह कान्फ्रेन्स सब जैनी भाइयोंका लक्ष्य आकर्षण करती है । ___(२) प्राकृत भाषाका सरल व्याकरण शीघ्रता पूर्वक तैयार करनेकी जरु
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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