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सभापति शेठ खेतशीभाईका व्याख्यान. अपनी बुद्धिका उपयोग नहीं कर सकते ? कुछ बुद्धिमान सज्जनोंने इन झगडोंका अन्त करनेके लिये बहुत बडा प्रयत्न प्रारंभ किया है; परन्तु उनके प्रयत्नमें उस समयतक सफलता होना आरम्भ है जबतक कि दोनों सम्प्रदायोंकी मुख्य संस्थाए ( जैसे 'श्वेतांबर जैन कान्फरन्स' और दिगंबरोंकी 'भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा') बीचमें पडकर एकता करनेका प्रयत्न नहीं करे। दोनों पक्षों से एक भी पक्ष यह बात तो कभी कहनेको तैयार नहीं होगा कि जिनदेवकी पूजा करनेके अधिकारी केवल दिगंबर ही है अथवा केवल श्वेतांबर ही है । में तो यह कहुंगा कि जैनकुलमें उत्पन्न होनेवालोंकी ही नहीं बल्कि संसारभरके मनुष्योंको जोकि जैनधर्मसे सहानुभूति रखते है। . ___ गृहस्थो अब मैं आपका विशेष समय लेना नहीं चाहता । वर्तमानमें जिन दो बातोंकी तमाम संसारको बहुत ज्यादा जरूरत है उन्हीं दो वातोंपर मैंने बहुत ज्यादा जोर दिया है, यानी (१) ऐक्यबल, और (२) विद्याबलके विषयमें ही कह कर मैंने अपने भाषणको पूरा किया है । मैं जानता हूं कि कान्फरन्सके सभापतिको शास्त्रोद्धार जीव-दया, साधु सुधार, जीर्णोद्धार आदि बातोपर भी भी बोलना चाहिये, ऐसी एक रूढी चली आई है, परन्तु मैं उस रूढीका आदर न कर सका इसका कारण यह है कि मैं 'उपयोगिता के सिद्धान्तका श्रद्धाल
और तात्कालिक आवश्यवक्ताओं पर ही लक्ष देनेवाला मनुष्य हूं। यदि इसमें किसीको मेरी भूल मालम हो तो मैं उनसे क्षगा माँगता हूं।
जैन समाज और हिन्दू युनिवर्सिटी । हिन्दुओंने शिक्षा प्रचारके क्षेत्रमें 'हिन्दू युनिवर्सिटी' स्थापनका जो महान और प्रशंसनीय कार्य किया है उसके लिये मैं हिन्दु भाइयोंको धन्यवाद देताहुँ, और देश कालकी अवश्यकताके अनुसार जो यह कार्य प्रारम्भ हुआ है उसकी मैं सम्पूर्णतया विजय चाहता हूं । साथ ही समयानुकूल यह सूचित करना भी अपना कर्तव्य समझता हूं कि, अन्य हिन्दु जातियोंकी तरह जैनभाइयोंको भी चाहिये कि वे इस संस्थाको अपनी समझें और उसे पूर्णतया मदद देवें । हिन्दु युनिवर्सिटीको भी चाहिये कि वह हृदयवल और बुद्धिवलके चमत्कारिक खजाने तुल्य जैनसात्यके अभ्यासके लिये प्रत्येक सुविधा सच्चे दिलसे कर देवे ।