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________________ ११ मी जैन श्वेतांबर परिषद्, उपसंहार. मृहस्थो, अन्तमें, आपने मुझे प्रमुख पद दिया इसके लिये और शान्ति तथा धीरजके साथ बहुत समय तक आप मेरी बातें सुनते रहे इसके किये मैं अन्तःकरणपूर्वक आपको धन्यवाद देता हूं और विनती करता हूं कि जिस जीवित श्रद्धाका उल्लेख मैं अपने भाषण के प्रारम्भमें कर चुका हूं वह जीवित श्रद्धा अपने दिलमें रखकर, कान्फरन्समें उपस्थित होनेवाले प्रश्नोंका शुद्धचित्त ओर बुद्धिके साथ निराकरण करें, और इस बातको ध्यान में रखते हुए कि - ' अपना उद्धार अपने ही हाथ है ' आवश्यकीय कार्यो और सुधारोंको अविलंब करना प्रारम्भ करदें । इस प्रवृत्ति से शासननायक देव भी प्रसन्न होकर हमारे हृदयमें विशेष शक्तिकी प्रेरणा कर हमें निजपरका कल्याण करनेके योग्य बनायेंगे । ५२ [त्यारपछी सब्जेक्टस कमिटी (विषर्यनिर्णायक सभा) ना सभ्यो कोन्फरन्सना बंधारणना नियम अनुसार चुंटी काढवामां आव्या हता. तदनंतर जैन एज्युकेशन बॉर्डनी जनरल सभा एकठी मळी हती तेमां सं. १९७२ अने १९७३ नो बॉर्डनो रिपोर्ट तेना एक सेक्रेटरी रा. मोहनलाल दलीचंद देशाइए वांची संभळाव्यो हतो. ते रिपोर्ट आमां मूकवामां आव्यो छे. ] द्वितीय दिवस (ता. ३१-१२-१७), (१) ( प्रमुखके तरफसे ) राजभक्ति । यह श्री जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स भारत सम्राट श्री पञ्चम ज्यॉर्ज और श्री महारानी भारतेश्वरी मेरीकी दीर्घायुके लिये प्रार्थना करती है और श्री ब्रीटीश ताजमें पूर्ण श्रद्धा और राजभक्ति प्रकाश करती हैं । और युरोपमें जो वर्त्तमान महासमर प्रबल हानि पहुंचा रहा है उसकी शीघ्र शान्ति हो ऐसी इच्छा प्रकट करती है । (२) ( प्रमुखके तरफ से ) भारतसचित्र स्वागत | भारत सचिव मान्यवर राइट आनरेबल मि के लिये भारत में पधारे हैं, उनका यह कान्फ्रेन्स उसके द्वारा हिन्दुकी आशा पूर्ण सफल हो उसके लीए प्रार्थना करती है । मोंटेग्यू जो भारत शासनसुधासादर स्वागत करती है और
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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