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________________ ११ मी जैन श्वेतांबर परिषद्. नेका काम कठिन ही नहीं मगर मुझे तो असंभव मालूम होता है । यह भी ध्यानमें रखना चाहिये कि अपने भिन्न २ गच्छोंमें भी जबतक हम मतसहिष्णु नहीं होंगे तबतक हमारा जीवन टिका न रहेगा । मान्यताओं, रुढियों और क्रियाभेदोंको आगे करके हमारे बीचमें वैमनस्य फैलानेबालोंको-चाहे वे गृहस्थो होंया त्यागी-हमें मजबुत हाथोंसे पकडकर दबा देना चाहिए। तमाम लोगोंके साथ-केवल उन लोगोंके सिवाय जो जैनसमाजकी एकतामें बाधक है-मत सहिष्णुता रखना चाहिए, प्रेमका बर्ताव करना चाहिए । धर्मके नामसे जो हमारे अस्तित्वमें ही कुठाराघात करते है उन्हे हमें कभी उत्तेजन नहीं देना चाहिए और न कोई ऐसा कायही करना चाहिए कि जिसमें उनको उत्तेजना मिले। इस कार्यके लिए एक उदार विचारका साप्ताहिक अथवा दैनिक पत्र निकालना चाहिए और वह नाममात्रके मूल्यमें प्रत्येक जैनके पास पहंचे ऐसा प्रबंध होना चाहिए। मेरा विश्वास है, कि इस प्रत्येक जैनसभा और मंडलमें ऐसा नियम होना चाहिए कि जिससे प्रत्येक प्रांत और प्रत्येक सम्प्रदाय या गच्छका जैन उसमें सम्मिलित हो सके। कान्फरन्सने मंदिरो और संस्थाओंकी देखरेखके लिए इन्स्पेक्टर नियत किये है, यह बहुत ही उत्तम है । इन्स्पेक्टरोंको किसी संस्थाकी कोई भी बात बिना देखे न छोडना चाहिए, और यदि किसी बातमें कोई त्रुटि हो तो उस त्रुटिको छिपानेका प्रयत्न नहीं करना चाहिए । इसी तरह किसी सार्वजनिक संस्थाका कार्य किसी एकही व्यक्तिके या किसी एकही ग्रामके या किसी एकही गच्छके लोगोके हाथमे ज्यादा समय तक नहीं रखना चाहिए । इसमें प्रतिनिधित्वका प्रचार होना बहुत ज्यादा उपयोगी है। इससे प्रत्येकको कार्य करनेका उत्साह बढेगा और प्रतिस्प के कारण 'पहिलेवालेसे मैं काम अच्छा करु" इस विचारसे लोग कार्य बहुत उत्साह और उत्तमतासें करेंगे, जिससे संस्थाए बहुत दृढ बनेगी । यह समय धार्मिक झगडे करनेका नहीं है । मै इस ओर खास तरहसे आपका लक्ष खींचना चाहता हूं। शिखरजी, मगसीजी आदि तीर्थोके झगडे जिन देवके भक्तोंमें होते है, एकही पिताके पुत्र-बाइ भाइ-आपसमें एक दुसरेके विरुद्ध लडनेको खडे होते है, यह बहुत ही हानिकर है। हमारे सार्वजनिक बलको, आर्थिक बलको और धार्मिक विचारोंको नष्ट करनेवाला है । अतः जिस तरहसे हो सके उसी तरह इस झगडेको नष्ट करनेका प्रयत्न करना चाहिए। अपनी जाति व्यापार और बुद्धिके लिए प्रसिद्ध है, तो क्या हम अपने इन आपसी झगडोको मिटानेके लिये
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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