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________________ ૧૧મી જૈન શ્વેતાંબર પરિષદ प्रकार श्रीहरिभद्रमुरिने, लोहाचार्यने और जिनसेनाचार्यने भी राजपूत सुतार आदिको जैनधर्मकी शिक्षा दे उनका परस्पर रोटीबेटी व्यवहार करवाया था "। आगे चलकर यही महाराज कहते हैं:-"जैनशास्त्रोंमें तो केवल उसी बातकी मनाई की गई है. कि जिसके करनेसे धर्ममें किसी प्रकारका दृषण लगे। बाकी तो लोगोंने अपनी अपनी रूढियाँ मान ली हैं । आज भी यदि कोई सारी जातियोंको एक करे तो कुछ हानि नहीं है । " मध्यकालीन हिन्दु धर्मगुरुओंने जिन जातिउपजाति आदिकी बेड़ियोंके द्वारा हिन्दुसमाजको निकम्मा बना दिया था, हमारे उदारचेता और दूरदर्शी आचार्योंने उन्ही बेड़ियोंको धार्मिक एकताकी छेनीसे काट दिया था। मगर खेद है कि वेही बेडियाँ हमने अपने आप फिर अपने पैरों में डाल ली हैं और हम जाति-उपजातियोंके दास बनकर दुखी हो गये है । इससे हमारी दशा कितनी भयंकर होगई है, उसका चित्र में आपके सामने रखता हूँ । सन १९११ ईसवीमें जैनसमाजकी ६,४३, ५५३ कुल पुरुषसंख्या थी, उस मेंसे ३,१७,११७ कँवारे थे और ६,०४,६२६ स्त्रीसंख्या थीं जिनमेंसे ९, ८१, ७०५ कुमारी थीं। इनमेंसे बालकों और वृद्धोंकी-यानी उन लोगोंकी जो संतान उत्पन्न करनेके अयोग्य हैं-संख्या कम कर दी जाय तो २० से ४५ वर्षके आयुकी बीचके २,३३,०३५ पुरुषों से ५९,९१२ कँवारे पुरुष थे और १५ से ४० वर्ष के बीचकी आयुवाली २,५३,८५४ स्त्रियोंमेंसे ५,९२८ कुमारी लड़कियां थीं। . वड़ी आयुकी इतनी कन्याएँ कुमारी रही इसका कारण सिर्फ एक है । और वह यह है कि अल्प संख्यावाली जातियों के होनेसे उन्हें वर नहीं मिलसके थे । ५५ जैनजातियां तो ऐसी हैं कि जिनको केवल अपनी सौ या सौसे भी कम संख्यावाली जातिमें ही रोटीबेटीव्यवहार करना पडता है। ऐसी हालतमें यदि जैनियोंकी संख्या प्रतिदिन घटती जाय तो इसमें आश्चर्य करनेकी कौनसी बात है ? ___ ऊपर जो अंक दिये गये है उनसे मालूम होता है कि ब्याही जाने योग्य उमरकी ५९,२८ स्त्रियोंके अविवाहित रहनेसे जैनियोंको संख्यामें जो अभिवृद्धि होती वह नहीं हुई । इसके अतिरिक्त दूसरी तरहसे जो हानि हो रही है वह तो . अलगही है । छोटी छोटी जातियोंसे कन्याविक्रय, वृद्धिविवाह, अनमेल विवाह होते है और उनका परिणाम विधवाओंकी संख्यावृद्धि है । यह सुनकर आपको बहुत ही आश्चर्य और दुःखहोगा, कि सन १९११ ईसवीमें छः लाख स्त्रियोंमेंसे डेढ लाख स्त्रियां विधवायें थी । अभिप्राय यह है, कि पचीस प्रतिशतक विधवाए
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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