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________________ ૪ ૧૧ મી જૈન શ્વેતાંબર પિરષદ્ ढंग से समाज और धर्म के लिए जो कुछ बन सका वो किया है। शिक्षित लोग चिल्ला रहे हैं कि देशकाल में परिवर्तन हो गया हैं अतः अब नवीन पद्धति से कार्य करना चाहिए, मगर वे पुकार करके ही क्यों बैठ जाते हैं ? कॉन्फरंस ' यह नाम नवीन देशकालके अनुसार वर्ताव करनेके हिमायतियोंने ही तो रक्खा है । मगर उन्हें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उन्होंने कॉन्फरंसके द्वारा समाजको लाभ पहुँचानेवाला कोई भी कार्य - जिसके लिए कि गर्व किया जा सके- अब तक नहीं किया है | कॉन्फरंसके एक सम्मेलनसे दूसरे सम्मेलन तक बीचके समयमें समाचारपत्रों में लेख लिखनेका, छुट्टियोंके दिनोमें प्रवास कर भाषणोंके द्वारा लोकमत अपनी ओर करनेका, और अपनेसे हो सके उतना परिश्रम करके ' केलवणी या शिक्षा फंड' के लिए द्रव्य एकत्रित करदेनेका काम शिक्षितोंको अपने शिर ले लेना चाहिए। 'जैन एज्युकेशन बोर्ड' के साथ पत्रव्यवहार कर उस संस्थाके संचालकोंकी कठिनाइयोंसे परिचित होना चाहिए; उन्हें कठिनाइयों से मुक्त होनेका मार्ग दिखाना चाहिए और बन सके तो कठिनाइयाँ दूर करनेके लिए स्वयमेव भी कोशिश करना चाहिए । अपनी शक्तिके अनुसार इस खाते में रकम देकर भी दूसरोंके दिलोंमें यह बात हँसाना चाहिए कि एक शिक्षित मनुष्य कितनी सेवा कर सकता है और वह अपने देशके लिए, समाज के लिए, धर्मके लिए कितना उपयोगी बन सकता है । अपनी संख्याका भयंकर -हास । ~ अब मैं एक एसे विषयपर कुछ विचार प्रदर्शित करूंगा जो कि बहुत ही खेदजनक और अत्याज्य है । बरसोंसे हम उन्नति उन्नतिकी पुकार करते आ रहे हैं; परन्तु इन कारोंसे कुछ लाभ नहीं हुआ । हमारी संख्या बढ़नेके बजाय घटती जा रही है: परन्तु हम उस ओर कुछ भी ध्यान नहीं देते । सन १८९१ इसवी में भारत के सब जैनोंकी संख्या १४,१६,६३८ थी । सन १९०१ मेंअपनी कान्फरंसके जन्मके लगभग - वह १३, ३४, १४० तक आगई थी, और उस जमाने में जब कि तीनों संप्रदायकी कॉन्फरंसें पूरी तंदुरस्त थी- संख्याका बढ़ना तो दूर रहा मगर जितनी वह पहिले थी उतनी भी नहीं रही; बल्के सन १९११ में घटकर १२,४८,१८२ रह गई । अभिनय यह है कि जिन दस वर्षोको हम उदयकाल मानते हैं, उनमें तो लगभग एक लाख आदमी हममेंसे कम हो गये हैं । इतना नहीं बल्के पहिलेकी अपेक्षा अब घटतीका प्रमाण भी विशेष हो गया है ।
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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