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સભાપતિ શેઠ ખેતશીભાઈકા વ્યાખ્યાન.
विद्याप्रचारके लिये अन्य सरल मार्ग। धनाढयोंकी सहायताके अतिरिक्त विद्याप्रचारके लिए साधारण जनसभाजकी सामान्य परंतु सहानुभूतिसूचक सहायता प्राप्त करनेका प्रयत्न करना भी आवश्यकीय है । और इसके लिए कॉन्फरंसने 'सुकृतभंडार फंड' के नामसे चार आना प्रति व्यक्ति (per head ) इकट्ठे कर उसकी आधी रकम शिक्षाप्रचारके कार्यमें खर्च करनेका जो नियम किया है वह बहुत ही उत्तम और दूरदर्शिताका है । यह बात ठीक है कि अबतक हम लोग इस मार्गसे बिल्कुल ही तुज्छ रकम एकत्रित कर सके हैं; परन्तु यदि हमारे मुनि महाराज इस विषयमें उपदेश देनेकी कृपा करें और दूसरी ओरसे गांवोंके और शहरोंके नवयुवक अपने २ ग्रामों और शहरोंसे 'सुकृत भंडार फंड' की रकम एकत्रित करनेका केवल एक ही महीनेतक प्रयास करें तो प्रतिवर्ष हजारों रुपये इस फंडको मिल सकते हैं । साधुवर्गमें और जवानोंमें केवल उत्साह बढ़ानेकी आवश्यकता है और इसके लिए नियमित पत्रव्यवहार व प्रवास के द्वारा शुभ वातावरण फैला सके ऐसे कार्यदक्ष
असिटें सेक्रेटरीकी अनिवार्य आवश्यकता है। 'सुकृतभंडार फंड' के इस विद्याप्रचारके पवित्र ध्येयकी सिद्धिके लिए दूसरे भी कई व्यावहारिक मार्ग मौजूद हैं । शारदापूजन, महावीरजयंती तथा संवत्सरी-ये तीन प्रसंग ऐसे हैं कि इन पर गरीबसे गरीब जैन भी कुछ न कुछ दान करनेके लिए स्वभावतः ही प्रेरित होता है । इस दानकी इच्छाको विशेष प्रबल करना और उसे एक ही दिशाकी ओर फिरा देना केवल इतना ही काम हमारे करनेके लिए बाकी रहता हैं । विद्याप्रचारके कार्यमें दान देना ही वास्तविक शारदापूजन है और ज्ञानके सागर महावीर पिताके जन्मका और मोक्षका आनन्दोत्सव करनेका भी यही एक सर्वोत्तम मार्ग है. यह बात यदि हम पेम्पलेटोंके द्वारा, समाचारपत्रोंके द्वारा, साधु महात्माओंके उपदेशो द्वारा, और कॉन्फरन्सके उपदेशकों द्वारा अपने भाइयों के हृदयोंमें अच्छी तरहसे हँसा सके तो छोटी छोटी रकमोंसे भी हम हजारों रुपये विद्याप्रचारके लिए इकठे कर सकते हैं ।
विद्याप्रचार और कान्फरन्सकी सफलताके लिए शिक्षितोंके सम्मिलित होनेकी आवश्यकता।
परन्तु बहुतसा काम शिक्षित लोगों को अपने जिम्मे कर लेना चाहिए । से। ठोंने और साधुओंने आजतक समाज और धर्मको टिका रवखा है; उन्होंने अपने