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સભાપતિ શેઠ ખેતશીભાઈકા વ્યાખ્યાન.
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व्रत' लेकर बैठे हुए हैं - सलाह और सहायताकी आवश्यकता है। इसके विना न कोई समाज आजतक आगे बढ़ा है और न बढ़नेकी आशा ही है । इतिहासप्रसिद्ध प्राचीन स्पार्टनोंका वैभव उनके वृद्ध सलाहकारों और स्वयंसेवकों के आधार पर था। युवक वर्ग उन वृद्धोंकी सलाह और आज्ञाको अपने सिरपर चढ़ाने में अपना गौरव समझता था ।
अपने माननीय स्वयंसेवक स्वर्गवासी सेठ प्रेमचंद रायचंद, सेठ केशवजी नायक, सेठ लालभाई दलपतभाई आदिकी सेवाको हम कभी नहीं भूल सकते। उनके नाम आज भी अँधेरी रात्रिमें तारोंकी तरह चमक रहे हैं । स्वर्गस्थ राय बहादुर बाबू बद्रीदासजी साहिबने कि जिनके स्वर्गवास होनेकी बात प्रगट करते. मुझे दुःख होता है, जातिकी सेवा करके अपना नाम अमर किया है । इन सब महानुभावोंकी जग को पूरी करनेके लिए, अब हमें महात्मा गांधी और माननीय गोखले के समान वानप्रस्थों - अर्द्धसाधुओं ( Missionaries) - की आवश्यकता है । व्यवस्थापक कार्यकर्ता ' स्वयंसेवक आगे आयें !
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तब यदि कॉन्फरंसके कार्यको सफल करना हो और जातिको उन्नत बनाना हो तो मैंने अभी कहा ऐसे कार्यकर्ताओंको आगे आना चाहिये । लोग उन्हें अपने सच्चे ' नेता ' समझेंगे; मगर उन्हें तो अपने आपको 'समाजसेवक ' ही समझना चाहिए | बारा महीने या दो बरस बाद एकत्रित होनेसे, या भाषणोंसे, या हजार- दो हजार रुपये एकत्रित करलेनेसे समाजका हित साधना कठीन मालूम होता है । सारे दूसरे कार्योका और गृहसंसारके जंजालका परित्याग कर समाजसेवाको ही अपना रोजगार-कार्य-बनानेवाले स्वयंसेवकोंको आगे आना चाहिए और उन्हें एक बड़े वेतनवाले सुशिक्षित सेक्रेटरीकी सहायतासे सारे दिन कॉन्फरंसका ही कार्य करते रहना चाहिए । ( १ ) समाजकी सेवा यह अपनी ही सेवा है, एसी श्रद्धा के साथ समाजसेवाकी चाह होना ' सेवकों अथवा नेताओंका पहिला गुण है । ( २ ) अपने समाजकी स्थितिकी और अपने आसपासके लोगोंकी स्थितिकी तुलना कर सके, एसा गंभीर - खुला हृदय होना, नेताका दूसरा गुण है । ( ३ ) समाजपर प्रभाव डाल सके एसी स्थिति ( Social status ) और इच्छाशक्ति ( Will-power ) का होना नेताका तीसरा गुण है; और (४) • समाजहित के लिए अपने सब लाभोंको - और आवश्यकता पड़े तो अपनी लोकप्रियाको भी- बलि देने के लिए तैयार रहना, यह नेताकी चौथी योग्यता है । .
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