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________________ ४० શ્રી જૈન . કોન્ફરન્સ હૈરલ્ડ. आधार पर होनी चाहिए । जब यह भावना हमारे हृदयोंमें प्रवेश करेगी और अपनी चैतन्यज्योतिका प्रकाश फैलाने लगेगी-मैं कह सकता हूँ-तब हमारे व्यापारी लोग सोनाचाँदीके ढेर लगा कर प्रसन्न होनेके लिए नहीं बल्के अपने और समाजकेदेशके-आत्माको विकसित करनेके लिए व्यापार करने लगेंगे विद्याध्ययन करने. वाले पढ़ लिखकर बड़ी बड़ी पदवियाँ पाने के लिए या मान तमगे प्राप्त करनेके लिए या भड़कदार भाषण देकर अपना रौब दिखाने के लिए नहीं, प्रत्युत अपनी आत्मशक्तिका विकास कर विकसित शक्तिको समाजकी उन्नति करने के लिए और उसको अकंटक मार्गपर चलानेके लिए ही विद्याध्ययन करने लगेंगे; और अपने साधु मुनिराज एक गच्छसे दूसरा गच्छ अच्छा है, एक साधुसे दूसरा साधु बढ़िया है, एसा दिखाव करनेके लिए नहीं परन्तु 'भिन्न २ आत्माऑकी अनंत शक्तियोंका एकीकरण करनेके लिए त्यागी आश्रम मददगार है' एसा समझकर एकीकृत शक्तियोंसे समाजको ऊपर ले जानेके लिए ही साधु बनेंगे । यदि एसे जोश और ऐसी 'जीवित श्रद्धा' का आप मूल्य समझने लग जायँगे तो कॉन्फरसकी और उसके द्वारा होनेवाला सामाजिक उन्नति सहजहीमें हो जायगी; क्योंकि इस श्रद्धा और जोशके कारण वानप्रस्थाश्रमका समाजमें पुनरुद्धार होगा; और अमुक उम्र तक द्रव्य प्राप्तकर विशेष धन कमानेका लोभ न कर सफलताप्राप्त निवृत्त व्यापारी, डाक्टर, वकील, बेरिस्टर और सरकारी नौकरीसे छूटे हुए पेन्शनप्राप्त अधिकारी लोग, अपने दीर्घकालके जीवनकलहमें जो अनुभव और वसीला उन्होने प्राप्त किया है उसे पूर्णतया समाजसेवाके कार्य अर्पण करनेको तैयार होंगे । किसी भी तरहके सेवाके कार्यको टिका रखने और उसे आगे बढ़ानेके लिए ऐसे अनुभवियोंके कार्य करनेका खास आवश्यक्ता है, उनके किये बिना किसी कार्यका चलना असंभव प्रतीत होता है। गहरे रहस्योंका पता लगानके लिए, काठन समश्या उपस्थित होनेके समय कोई सुगम मार्ग खोज निकालनेके लिए, नवयुवकोंके हृदयोंमें उत्साहकी प्रेरणा करनेके लिए, धनाढयोंपर प्रभाव डालनेके लिए, और सरकारमें जातीय बातोंका पेश करनेके लिए ऐसे · अर्द्ध-साधु 'ओंका-जो प्राइवेट जीवनसे निवृत्त होकर समाजसेवाके लिए अपना जीवन अर्पण करनेका
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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