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________________ સભાપતિ શેઠ ખેતસીભાઈકા વ્યાખ્યાન. सम्मेलन पश्चात तो कॉन्फरन्स भयंकर रोगमें ग्रस्त हो गई थी। सौभाग्यवश बम्बईके सुशिक्षित लोगोंको उस कठिन समयमें सुमति सूझी। परिणाम यह हुआ कि कॉन्फरन्सका दसवाँ अधिवेशन बम्बईमें हुआ और दृढ बंधारण (Constitution) किया गया । इस प्रकार कॉन्फरन्सकी प्रगतिके इतिहासमें एक नये भध्यायका प्रारम्भ हुआ। तथापि इन सोलह वर्षोंमें एक बुद्धिशाली, ऐक्यप्रेमी और समृद्धिपान जनसमूह जितना उन्नति कर सकता है उतनी हम न कर सकें, यह बात साफ दिलसे हमें मानना चाहिए और उन्नतिके बाधक जितने भी तत्व हैं उनकी खोज करके विवेकपूर्वक उन्हें दूर करनेका प्रयत्न करना चाहिए। मेरी मान्यतानुसार तीन मुख्य बातें हमारी उन्नतिका काँटा बन रही हैं । (१) जातियों, सङ्को और मुनियोंके झगड़ोंको हमने अपनी ऐहिक उन्नतिके हस्तक्षेप करने दिया, और उनको रोकनेका और लक्ष नहीं दिया । (२) 'लक्ष्मी और विद्या इन दोनोंके संयोग बिना किसी महान कार्यको होना असम्भव है। इस व्यवहारिक सिद्धान्तको हम काममें न ला सके । (३) अपनी मर्यादित शक्तिको हमने बहुत कामोमें तितरबितर कर दी। जिससे एक भी काम पूरा नहीं हुआ और इस सिद्धान्तको कि, 'थोड़े पर तात्कालिक आवश्यकीय कायोंमें अपनी सारी सम्मिलित शक्तिका उपयोग करनेसे सब काम सिद्ध हो जाते हैं। हम व्यवहार में न ला सके । इन मुख्य रुकावटोंके कारण सङ्क-शक्ति बढ़ाने के लिये जिन मुख्य साधनोंको प्राप्त करनेकी आवश्यकता थी उनके लिये हम एक चींटीकी चालसे प्रयत्न करनेके अतिरिक्त विशेष कुछ भी न कर सके । विद्याद्धिके लिये 'एज्युकेशन वॉर्ड' की जो सुन्दर योजना हुई थी उस सर्वोत्तम उपयोगी व आवश्यकीय कार्यको भी अब तक पूरता बल नहीं मिला । जहाँ पारसी और लुहाणा आदि जातियाँ प्रति बो हजारों ही नहीं बल्कि लाखों रुपये विद्याप्रचार के लिये व्यय कर सकती है, वहीं हमारी जातिजो कि उक्त जातियोंसे विशेष संख्या और साधनवाली है-कॉन्फरन्सको सर्वोपरि और समाजके लिए अत्यंत लाभदायक, विद्याप्रचारकी जो इच्छा है उसके लिये कुछ भी न कर सकी और ऐसे समयमें भी न कर सकी जब कि लड़ाईके कारण बहुतोंकी आमदनी असाधारण बढ़ी हुई है । तब यही कहना पड़ता है कि हमें बड़ी निष्फलता हुई है । मेरे माननीय बंधु गुलाबचन्दजी ढड्ढाने गतवर्षमें कॉन्फरन्सकी जो रिपोर्ट पढ़ी थी उससे मालूम होता है, कि विक्रम सम्बत् १९६० से १९७१ तक-ग्यारह वर्षके लंबे कालमें-विद्याके लिये केवल तीस हजार रुपये व्यय किये
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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