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________________ 30 श्री जैन श्वे. ३२न्स २८४. गये हैं । क्या इससे सिद्ध नहीं होता ? कि हम रोगी हैं, और हम एक भयानक स्थिबिसे गुजर रहे हैं! ___ परन्तु संसारमें युद्धने नवीन जोश उत्पन्न किया है। बहुरङ्गी भारतीय प्रजाने जो चिरकालसे आलस्य, फूट और लापरवाहीकी बेड़ियोंसे बंधी हुई थी-अब बेड़ियोंको तोड़ स्वराज्य प्राप्तिका जबरदस्त युद्ध प्रारम्भ किया है। कलकत्ता आज प्रवृत्ति और शक्तिकी आग बरसा रहा है। इसकी वांछनीय छूत यदि जैनी भाइयोंको भी लग जाय तो इसमें कुछ आश्चर्यकी बात नहीं है । कलकत्तेके जैन भाइयोंने, कॉन्फरसकी मंद स्थितिका और देशकी उग्र प्रवृत्तिका विचार तथा मुकाबिला करके कॉन्फरंसको जो आमंत्रण दिया है यह बहुत ही उत्तम काम किया है । मुझे विश्वास है कि अपने देशके अमूल्य रत्नतुल्य प्रजाके नेता अपने विचारोंकी जो प्रखर आन्दोलन धारा इस भूमिपर बहा रहे हैं उसमें आप अवश्य स्नान करेंगे ओर जिस भारतमजाका पुनरुत्थान करनेके लिए ये महापुरुष प्रयत्न कर रहे हैं उस प्रजाके एक उपयोगी अंगको-जैनसमाजको-उन्नत बनानेके लिए आप भी धनबल, जनबल, ऐक्यवल ओर विद्याबल इकट्ठा करेंगे । भारतके उद्धारके आन्दो. लनका वातावरण यहाँसे उत्पन्न होकर समस्त देशमें प्रसारित होता है इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है । यह वही भूमि है, कि जिसने भूतकालमें कई तीर्थकर और तत्वज्ञानी पैदा किये थै-जिनकी तेजपूर्ण किरणोंने केवल भारतवर्षको ही नहीं बल्के सारे संसारको चकचोंधा दिया था उसी भूमि पर उत्साहपूर्ण संयोगोंमें आज एक होकर क्या हम अपने इतिहासमे एक नवीन और गौरवशाली अध्याय. का प्रारंभ करनेके लिए कोशिश नहीं करेंगे? इस प्रश्नका उत्तर में या कोई अन्य एक व्यक्ति नहीं दे सकता । इसका उत्तर जैनसमाजके समस्त व्यक्ति या श्रीसंघ देगा । मैने मंगलाचरणमें भी श्रीसंघको ही दुःख हरनेवाला और पवित्र बनानेवाला देव मानकर प्रार्थना की है; क्योंकि संघबल-एकत्रित बल-ही प्रत्येक समाजकी मुक्तिका मूलमंत्र और शासनरक्षक देव है। गृहस्थो, मैं एक व्यापारी हूँ; और आप जानते हैं कि व्यापारीके तीन खास लक्षण होते हैं । (२) चारों ओरकी स्थितियोंका और अनुकूल तथा प्रतिकूल बहते हुए वायुका गंभीरतासे विचार करना । (२) कल्पनाओं और सिद्धान्तोंकी अपेक्षा काममें आनेवाली हकीकतों ( facts ) और आँकड़ो ( Figures ) पर विशेष
SR No.536514
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1918 Book 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1918
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size18 MB
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