SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर जैन कॉन्फरन्स हॅरल्ड. होकर आत्मानंदमें रमण करना, कि जिससे शाश्वत आनंदमय पुष्कळ मुखप्राप्ती शीघ्रही शरणभूत हो. ____हे धर्माभिमानी सज्जन ! हरएक जीवको पूर्वमें स्वर्गादिके सुख प्राप्त हुवे होंगे परंतु तृष्णा देवी तृप्त नहीं होती जब स्वर्गसुखसेभी आधिक आनंदकी तृप्ति न हुइ तो मनुष्य सुखसे तो क्या तृप्ति होनेवाली है वास्ते, हे, पाठक ! अब तो अखंड आनंदके झरे और मोक्षसुख संप्राप्तिमें सहायभूत ऐसे धर्मरूपी रत्नको ग्रहण करनेमें कटिबद्ध हो. हे वीर ! जिसको विषय कषायका आवेश हो, तत्वकी अश्रद्धा हो, गुणवंत उपर द्वेष हो, जिसको धर्मकी पहेचान नहीं, वह धर्मी किस तरह कहला सक्ता है ? ___ अलबत्ता, जिसको तत्त्वकी श्रद्धा हो, जो महाव्रती हो, अप्रमादी हो, प्रभूभक्ति लयलीन हो, मोक्षाभिलाषी हो, दयावान हो, और शुद्ध आचारवाला हो, वह मनुष्य धर्मात्मा कहा जायगा, वास्ते, हे सुज्ञ पुरुषो ! तुम्हे उंचे पट्टपर पहुचना है तो, किसीकी निंदा करना छोड दो, गुणी जनकी प्रशंसा करो, अल्प गुणीपर कभी द्वेष मत करो. ओर आगम ( शास्त्र ) का निश्चय करके लोक संज्ञा छोड विवेक गृहण करके श्रद्धामें मजबूत बने रहो. और बालकसेभी प्यार करके मदुवचनसहित हितवार्ता गृहण करो. और निर्गुणीसे पापकी वार्ता श्रवणभी मत करो मगर याद रखना कि दुर्जन उपर भी द्वेष करनेकी शास्त्रकार मनाइ करते है. सत्य बोलना, चोरी नहीं करना, अन्याय से अलग रहना, न्यायोजित द्रव्य पैदा करना, औरोंकी आशा से पापाचरण नहीं करना, किसी की चुगली न खाना कोइप्रशसा करतो गर्व नहीं करना, कोई अपमान करेतो दुर्जनका स्वभाव समझना और धर्माचार्य की सेवामें स्थित रह कर तत्व को जानने की इच्छा रखना, पवित्रता धैर्य निष्कपटता समता शील और संतोष धारण करना यही धर्मा पुरुषों के खास अमूल्य गुण है. वास्ते, है आत्मानंदी ! प्रमाद रुपी शत्रूका विश्वास न करके " महाजनो येन गः संयथा" " पूर्वले अपने हित करने वाले धर्मी पुरुष जिस रास्ते चले उसी सीधी सडक पर चलना" यह धर्मात्मा पुरुषों के लक्षण है. हे बंधु ! धर्मात्मा पुरुषों की शोभा कहां तक लिखू ? धर्मी प्राणी सिद्धांत रूपी समुद्रमें चंद्रमा जैसे निर्मल भवदुःख रुपी ताव के निवारक, पाप रुपी पडिाके त्यागका क्रोध मान माया ओर लोभ का पराजय करने में समर्थ, संतोष में सदा कुशल, इंद्रिय रुपी तस्करों का दिग्विजय करने में शूखीर, शील रुप आभूषणसे सुशोभित, सर्व गुण संपन्न, ऐसे अनुपम धर्मात्मा ( मुनिराज ) पुरुषो की यथार्थ शोभा प्रकट करने
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy