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________________ एल. जैन कॉन्फरन्स हॅरल्ड : इन्हें बहुतसे संग्राम करने बांकी है। महात्माओंके विशाल भुवनमें प्रवेश करना इन्होंने अभी सीखाही नहीं । अस्तुं ! अब मैं अपने पाठकोंका ध्यान फिर पूर्व चित्रकी तर्फ आकर्षित करता हूं. मुनि सदैव के लिये वसुधा देवीकी गोदमें सो जाते हैं। रात्रिका मनोहर रूपभी भयानकता में परिणत हो जाता है चंद्रमा इस घटनाको लोकांतरमें खबर देनेके लिये अस्ताचलपर पहुंच गया ! शांतरस करुणाके रूस में बदल गया ! प्रातःकाल होते ही महर्षि के शाश्वत वियोगकी तारे स्वारों तर्फ खडक गईं दुकानें बंद करदी गई । कार व्यवहार बंद होगए । कहां तक कहूं। कुछ समय तक करुणारसकाही शासन चलने लगा । लो अबदश बजगए। सुंदर विमानमें सुसज्जित है महर्षि जा रहे हैं। सहस्त्रों ही स्त्रीमनुष्यसाथमें हैं. आओ। आपने भी उस गीतको गातेहुए साथ साथ चलें जिसको महार्षि प्रेमसे गाया | वा सुनाकरते थे. हमेशा के लिये रहना नही इसदारे फानिमें कुछ अच्छे कामकरलो चारदिनकी जिंदगानी में । १ । बहालेजायगा इकदिनयह दरयाए फना सबकों रुकावट आनहीं सकती कमी इसकी रवानीमें । २ । कयामिस जानहींसब कूचकर जायेंगे दुनिया से कोइ बचपन कोइ पारी कोइ अहदे जवानिमें । ३ । ॥ इति ॥
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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