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________________ "जैनाचार्य-श्रीमद्विजयानंद सूरि" मिले ! आओ महर्षिकी उपदेशवीणासे निकलते हुए ईश्वरीय आलापका अध्ययन करें! क्या जाने ! ऐसे दयालु अध्यापकके दर्शन फिर न हों !! देव, गुरु और धर्मके वास्तविक स्वरूपको निरूपणकर आपने व्याख्यान समाप्त किया! “शरीर त्याग" प्यारे पाठको ! ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमीकी रात्रि है, तारामंडलसे विभूषित चद्रमा प्रीय रमणीके सौंदर्यको निरंतर बढ़ा रहाहै, इस रात्रिका बाह्य दृश्य तो बहुतही शांत और मनोहर है. परंतु अंतरीय चित्रमें तो बड़ी ही भीषणता और कुटिलता भरी हुई है ! नित्य कृत्यको समाप्तकर महात्मा शयन करगये हैं ! बारां बजेका समय है. चारों तर्फ शांतता और निश्चलता के राज्यकी सत्ता व्याप्त हो रही है. कायर मृत्युमें साहस नहीं कि, महर्षिके विश्वव्यापी तेजका एकदम सामना करसके। इसलिये गुप्तरूपमें ऐसे समयपर धीरे धीरे अपना कुटिल जाल फैलाने लगी ! ओहो ! निर्भयमुनि शौचक्रियासे निवृत्त हो मृत्यु देवीके स्वागतके लिये बैठ गये हैं ! शरीरकान्ति चंद्रशोभाको हँस रही है ! आहा ! मुखसे अर्हन् शब्दकी पवित्र ध्वनि निकलने लगी ! अभी समय कुछ बाकी है। सामने बैठा हुआ शिष्यपरिवार अर्हन्का नाद सुन रहा है ! ओहो ! समय पूरा हो गया। घंटी बजी। लो भाई अब हम जाते है । अर्हन्। इतना कहतेही हँस चल दिये।। ! इसका नाम है सच्चा और सार्थक जीवन। महर्षे । तेरा जीवन सफल है। तेरे नाम पर संसार भरकी समस्त विभूति भी न्यौछावर कर दी जावे तो थोडी है। धन्य हैं वह नेत्र। जिन्हों ने तेरा दर्शन किया है, वह कर्ण सफल हैं। जिन्होंने तेरे उपदेश तूर्यके मधुर रखको सुना है. उस माताको सहस्त्रशाः धन्यवाद है जिसने । तेरो जैसे रत्नको पैदा किया था. मुने । तेरे शाश्वत वियोगका आज किसे दुःख नहीं। तेरे जैसे अमूल्य रत्नोंसे यह वसंधरा आज शून्य होचली है। प्यार पाठको । आओ। महात्माओंकी कदर करनी सीखें ! महात्माओंके यहां तेरे मेरेकी दुर्गंध नहीं हैं ! इनके दरबारमें सबको समान दृष्टि से निरीक्षण किया जाता हैं ! संभव है कि, इस लेखमें जैन शब्दको देख बहुतसे क्षुद्राशयके महाशय कुछ नाक भी चढ़ावें ! परंतु वे अमी कूपके दादुर हैं ! इन्हें समुद्रजलकी हवा नहीं लगी ? प्राकृत विद्यालयमेंसे अभी इन्हें बहुत कुछ सीखना बाकी है। वे अभी शब्दोंके ही गोरख धंदेमें पडे हैं ? लक्ष्य प्राप्तिके लिये अभी
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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