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________________ वीर्य-सत्त. "Have faith in the ultimate triumph of the evolution of the soul within you, which nothing can finally frustrate." अन्ततः आपकी अन्तरात्माकी उन्नतिका विजय अवश्य है, इसपर श्रद्धा रखिये क्योंकि अन्तमें उसके आडे कोई विघ्न ही न रहेगा. मोह राजा या दुनिया के विषयरुपी सुभट, आत्माको अपने जालमें फँसावे; परन्तु आत्मसिंह जब अपना सच्चा स्वरूप प्रकट करेगा, जाल स्वयमेव टूट जायगा और भ्रमसे जो मेडसा देख पडता है जाता रहेगा. उस समय उसे अनुभव हो जायगा कि मैं ही शुद्धबुद्धमुक्त स्वरूप हूं. श्रीमद हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल राजाको ज्ञान दिया था कि:---- प्रयातु लक्ष्मीचपलस्वभावा, गुणा विवेकप्रमुखाः प्रयान्तु । प्राणाश्च गच्छन्तु कृतप्रयाणाः, मा यातु 'सत्वं' तु नणां कदाचित । चाहे चपल लक्ष्मी चली जाय, चाहे विवेकादिक गुण न रहे, और प्रयाणोन्मुख प्राण भी निकल जाय, परन्तु मनुष्यका 'सत्व' कभी न जाना चाहिये. "सत मत छोडे सांइया, सत छोडत पत जाय." यों तो सत् या सत्व शब्दके अनेक अर्थ हैं, परन्तु यहां पर इसका व्यवहार दो अर्थमें हुआ है: अव्वल 'आत्मश्रद्धा' और दूसरे 'वीय.' जबतक मनुष्यमें आत्मश्रद्धा है तबतक वह कभी नहीं डरता, चाहे उसे सम्पूर्ण संसार क्यों न छोड दे ? आत्म शक्तिमें श्रद्धा रखनेवाला मनुष्य सम्पूर्ण जगतपर आत्मबलप्ते अपनी सत्ता रखता है. सब गुण आत्माके आधिन हैं, इस वास्ते चाहे मृत्यु हो जाय परन्तु आत्मिक बलका नाश न करना चाहिये. इसके साथ ही कुमारपालको यह भी उपदेश दिया गया था कि आत्मबलकी भांति शारीरिक वीर्यकी रक्षा करना आवश्यक है. वीर्य मनुष्य के शरीरका राजा है. जैसे राजा विना राज्यमें अंधाधुधी फैल जाती है, राज्य निरर्थक हो जाता है, वैसे ही वीर्यहीन मनुष्य निस्तेज होजाता है, उसके शरीरमें अनेक रोग होजाते हैं. शरीरके सातों धातुओंमें वीर्य मुख्य है. उसके बलसे शरीरके सब यन्त्र ठीक २ चलते हैं. परन्तु कहते हुए दुःख होता है कि उसकी–वीर्यकी टीक २ रक्षा आजकल नहीं की जाती. उसका बुरी तरह नाश किया जा रहा है, इससे हम उचित समझते हैं कि भावी सन्तानके लिये दो बातें यहां पर लिखी जाय. बचपनसे ही निष्कलंक रीतिसे ब्रह्मचर्यका पालन किया जावे-बराबर वीर्यकी रक्षा की जावे, व्यायाम याने कसरत कर शरीरके प्रत्येक अंगकी पूर्णता की
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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