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सम-सन्देश.
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सद्धर्म-सन्देश.
मन्दाकिनी दयाकी, जिसने यहां बहाई ।
हिंसा कठोरताकी, कीचडको धो बहाई ।। समता सुमित्रताका, ऐसा अमृत पिलाया।
द्वेषादि रोग भागे, मदका पता न पाया ॥१॥ उस ही महान् प्रभुके, तुम हो सभी उपासक ।
उस वीर वीर जिनके, सद्धर्मके सुधारक । अतएव तुम भी वैसे, बननेका ध्यान रक्खो ।
आदर्श भी उसीका, आँखोंके आगे रक्खो ॥२॥ संकीर्णता हटाओ, दिलको बडा बनाओ।
निज कार्यक्षेत्रकी अब, सीमाको कुछ बढाओ ॥ सवहीको अपना समझो, सबको सुखी बना दो।
औरोंके हेतु अपने, प्रिय प्राण भी लगा दो ॥ ३ ॥ ऊंचा उदार पावन, सुखशान्तिपूर्ण प्यारा ।
यह धर्मक्ष सबका, निजका नहीं तुम्हारा ॥ रोको न तुम किसीको, छायामें बैठने दो। ____ कुल जाति कोई भी हो, संताप मैटने दो ॥ ४ ॥
जो चाहता हो अपना, कल्याण, मित्र ! करना । _____ जगदेकबन्धु जिनका, पूजन पवित्र करना ॥
दिल खोल करके करने दो, चाहे कोई भी हो । ___ फलतेहैं भाव सबके, कुल जाति कोई भी हो ॥ ५॥ सन्तुष्टि शान्ति सच्ची, होती है ऐसी जिससे ।
ऐहिक क्षुधा पिपासा, रहती है फिर न जिससे- ॥ वह है प्रसाद प्रभुका, पुस्तक-स्वरूप हसको ।
सुख चाहते सभी हैं, चखने दो चाहे जिसको ॥ ६॥ यूरुष अमेरिकादिक, सारे ही देशवाले ।
अधिकारि इसके सब हैं, मानव सफेद काले ।