________________
१९११]
सदाचारका वर्णन.
[३४१
बननेके और यमुनाजीके नये पुलके लाभोको दिखलाकर आगरेके व्यापारीयोंकों वहांके व्यापारके बढनके लिये कहाथा उक्त महोदयकी वक्तताको अविकल न लिख कर पाठकोके ज्ञानार्थ हम उसका सार मानं लिखते हैं, पाठकगण उसे देख कर समझ सकेंगें कि उक्त साहब बहादुरने अपनी वक्ततामें व्यापारियोंको कैसी उत्तम शिक्षा दीथी, वक्तृताका सारंश यही था कि "ईमानदारी और सच्चा लेन देन करनाही व्यापारमें सफलताका देनेवाला है. आगरेके निवासी तीन प्रकारके जुएमें लगे हुए हैं यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि यह आगरेके व्यापारकी उन्नतिका बाधक है इस लिये नाजका जुआं चांदीका जुआं और अफीमका सट्टा तुम लोगोंकों छोडना चाहिये इन जुओंसें जितनी जल्दी जितना धन आता है बह उतनी ही जल्दी उन्हींसे नष्टभी हो जाता है इस लिये इस बुराईको छोड देना चाहिये यदि ऐसा न किया जावेगा तो सर्कारको इनके रोकनेका कानूम बनाना पडेगा इस लिये अच्छा हो कि लोग अपने आपही अपने भलेके लिये इन जुओंको छोड दे स्मरण रहे कि सर्कारको इनकी रोकका कानून बनाना कुछ कठिन है परन्तु असंभव नहीं है प्रींगजकी भविष्यनी उन्नति व्यापारियोंको ऐसे दोषोंको छोडकर सच्च व्यापारमें मन लगाने पर ही निर्भ रहै इत्यादि इस प्रकार अति सुन्दर उपदेश देकर श्रीमान् लाट साबने चमचमाती (चमकती) हुई कन्नी और वसूली से चूना लगाया ओर पत्थर रखनेका गति पूरी की गइ अब सेठ साहुकारों और व्यापारियोंको इस विषयपर ध्यान देना चाहिये कि श्रीमान् लाट साहबने जुआ न खेलनेके लिये जो उपदेश किया है वह वास्तवमें कितना हितकारी है सत्य तो यह है कि यह उपदेश न केवल व्यापारियो और आगरे निवासीयोके लिये ही हितकारक है बरन् सम्पूर्ण भारत वासियों के लिये यह उन्नतिका परम मूल है इस लिये हम भी प्रसंगवश अपने जुआ खेलने वाले भाइयोंसें प्रार्थना करते है कि अंग्रेज जातिरत्न श्रीमान छोटे लाट साबके उक्त सदुपदेशको अपनी हृदयपंटरी पर लिख लो.
.
अपूर्ण.