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[ नवे५२
कहिय उनके हृदयमें सदाचार और सान्दरि कहांसे उत्पन्न हो सकता है* सिर्फ इसी कारणसे वर्तमान में यथायोग्य आचार सद्विचार और सत्संगति बिलकुल ही उठ गई इन लोगोंने सुधरनेका अब केवल यही उपाय है कि ये लोग कुसंगको छोउकर नीति और धर्मशास्त्र अदि ग्रन्थोको देखें सत्संग करें भ्रष्टाचारोंसे बचें
और सदाचारको उभय लोकका सुखद समझें देखो भ्रष्टाचारोंकी मुख्य जड कुव्यसनादि है क्योंकि उन्हींसे बुद्धि भ्रष्ट होकर सदाचार नष्ट हो जाता है परन्तु बडे ही खेदका विषय है कि इस जमाने में कुव्यसनोंके फंदेसें विरले ही बचे हुए होंगे इसका कारन सिर्फ यही है कि हमारे देशके बहुतसें भ्राता ब्यसनों के यथार्थ स्वरूपसे तथा उनसे परिणाममें होनेवाली हानिलें बिलकुल ही अनभिज्ञ है अतः व्यसनोके विषयमें यहां संक्षेपसें पाठकोकि सेवामें पेश करता हुं. __ अपने पूज्य शास्त्रोमें सात व्यसन कहे है जो कि इस भव और पर भव दोनोको बिगाडते हैं उसका विवरण संक्षेपसें इस प्रकार हैं.
अवल जुआ.
वध्यां धाम्नि वधू विधाय स कुधीधुर्यः सुतानीहते ।। झापा पातमुपेत्य पर्वतपतेः प्राणान् सच प्रेप्स्यति ॥ . साच्छद्रामधिरुय नाव मुदधेः कूलं च कांक्षत्य सौ॥
कृत्वा कैतव कौतुकं प्रकुरुते वित्त स्पृहां यो जडः ॥ इसका अर्थ य है कि जो मूर्ख मनुष्य जुआ का कौतुक कर द्रव्यकी इछा रखता है जो कुबुद्धिका सरदार मनुष्य वांज की रख कर पुत्रकि इछा रखे मेरु पर्वतपरसें झांपापत (कुदकर ) प्राणोकि इछा रखे तथा छेदवाला वहाग (जहाज) में बेठ कर पार होने की इछा करे यह व्यसन सातो व्यसनोका राजा है देखो इस व्यसनसें बहुत लोग फकीर हो चुके हैं और हा रहे हैं सट्टा जुआका शिर ताज है अभी थोडेही दिनोकी वात है सं १९०८ ता. ८ जनवराको संयुक्त प्रान्त (यूनाइटेड प्राविन्सेज) के छोटे लाट साहब आगरेमें फ्रींगजका बुनियादी पत्थर रखनेके महोत्सवमें पदारे थे तथा बहां आगरके तमाम व्यापारी सज्जनभी उपस्थित थे उस समय श्रीमान छोटे लाट साहबने अपनी सुयोग्य वक्ततामें फ्रीगज