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________________ १९११] सदाचार वर्णन. [३३९ । सदाचार बर्णन. (लेखक-सालगीया काकावारा चंपालालजी तस्यात्मज चोख बंदजी देवळीया-माळवा.) सदाचारका खरूप. यद्यपि सद्विचार और सदाचार ये दोनों ही कार्य मनुष्यों दोनों भवोंमें सुख देतें है परन्तु विचार कर देखने में ज्ञात होता है कि-इन दोनों में सदाचार ही प्रबल है क्यों कि सद्विचार सदाचारके आधीन है देखो सदाचार करनेवाले (सदाचारी) पुण्यवान पुरुषको अछेही विचार उत्पन्न होते है और दुराचार करनेवाले (दुराचारी) दुष्ट पापी पुरुषको बुरेही विचार उत्पन्न होते है इसी लिये सत्य शास्त्रोमें सदाचारकी वहुतही प्रशंसा की है तथा इसको सर्वोपरी माना है सदाचारको अर्थ य है कि मनुष्य दानं शील व्रत नियम भलाई परोप कार दया क्षमा धीरज और सन्तोषके साथ अपने सर्व व्यापारोंको करके अपने जीवन निर्वाह करें. सदाचार पूर्वक वर्ताव करनेवाले पुरुषके दोनो लोक सुधरते हैं तथा मनुप्यमें जो सर्वोतम गुण ज्ञान है उसका फलभी यही है कि सदाचार पूर्वक ही वर्ताव किया जावे इस लिये ज्ञानको प्राप्त कर यथा शक्य इसी मार्गपर चलना चाहिये हां यदि कर्म वश इस मार्गपर चलने में असमर्थ हो तो इस मार्गपर चलने के लिये प्रयत्न तो अवश्य ही करते रहना चाहिये तथा अपने इरादेको सदा अच्छा रखना चाहिये क्योकि यदि मनुष्य ज्ञानको पाकर भी ऐसा न करे तो ज्ञानका मिलनाही व्यर्थ है. परन्तु महान शोकका विपय है कि वर्तमानमें आर्य लोगोंकी बुद्धि और विवेक प्राय:सदाचारसे रहित होनेके कारण नष्ट प्राय हो गये हैं देखो भाग्यवान (श्रीमान) पुरुष तो प्राय अपने पास लुच्चे बदमास महाशौकीन विषयी चुगल खोर और नीच जातिवाले पुरुषोंको रखते हैं वे न तो उतम २ ग्रन्थोकों व परोप कारी सज्जनोके लेखकों देखते हैं और न अच्छे जनोकी संगति ही करते हैं तब
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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