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જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ.
[भोगष्ट
तोंका वर्णन 'लखा हुआ है उसे समझ लेना चाहिये अर्थात् बौरासी नगरों के प्रतिनिधि यहां आयेथे उसी दिनसें उनकी चौरासी न्यातंभी कहलाती है पिछे देश प्रथासें उनमें अन्य २ भी नाम शामिल होते गये हैं.
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अब विचार करनेका स्थल यह है कि देखो उस वक्त न तो रेलथी न ताथा और न वर्तमान समयकी भांति मार्ग प्रबन्ध हीथा ऐसे समय में ऐसी बृहत् (बडि) सभा के होने में जितना परिश्रम हुआ होगा तथा जितने द्रव्यका व्यय हुआ होगा उसका अनुमान पाठकगण स्वयं कर सकते हैं.
अब उनके जात्युत्साहकी तरफ ध्यान दिजिये किं -- वह ( जात्युत्साह ) कैसा हार्दिक और सद्भाव गर्भित था कि वे लोग जातिय सहानुभूतिरूप कल्प वृक्षके प्रभावसें देशहित के कार्योंकों किस प्रकार आनन्दसें करते थे और सब लोग उन पुरुषों को किस प्रकार मान्य द्रष्टिसें देख रहेथे परन्तु अफसोस है कि वर्तमान (अर्वाचीन) में उक्त रीतिका बिलकुल ही अभाव हो गया है वर्तमान में सब वैश्योर्भे परस्पर एकता और सहानुभूतिका होना तो दुर रहा किन्तु एक जातिमें तथा एक मतवालो में भी एकता नहीं हैं इसका कारण केवल आत्माभिमान ही है अर्थात लोग अपने २ बडप्पनको चाहते है क्योकि सज्जन पुरुषोने विचार कर देखा है की लघुताही मान्यका स्थान तथा सब गुंणोका अबलम्बन है इसी उदेश्यको हृदय स्थलकर पूर्वज महज्जनोंने लघुताकी एक स्तवन (स्तोत्र ) बनाया है उसका भावार्थ यह है कि--चन्द्र और सूर्य बडे है इस लिये उनकों ग्रहण लगता है परन्तु लघु तारागणकों ग्रहण नहीं लगता है संसार में यह कोइ भी नहीं कहता हैं कि--तुम्हारे माथे लागुं किन्तु सब कोई यही कहता है कि तुम्हारे पगे लागूं इसका हेतु यही है कि --चरण ( पैर ) दुसरे सब अंगेसे लघु है इस लिये उनको सब नमन करते हैं. पूर्णिमाके चन्द्रको कोई नही देखता और न उसे नमन करता है परन्तु द्वितीयाके चन्द्रको सबही देखते और उसे नमन करतें हैं क्योंकि वह लघु होता है कीडी एक अति छोटा जन्तु है इस लिये चाहे जैसी रसवती (रसोईं) तैयार की गई हो सबसे पहिले उस ( रसवती ) का स्वाद उसी (कीडी) को मिलता है किन्तु किसी बडे जीवको नहि मिलता है जब राजा किसपर कडी द्रष्टि (तेज निघा ) वाला होता है तब उसके कान और नाक