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वैश्य जातिका दिग्दर्शन.
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હીત કરવાના કાર્યમાં લગભગ પિતાની આખી જીંદગી પસાર કરનારા માન્યવર દાદાભાઈ નવરેજછ તથા લોક માન્ય એન. મી. ગોપાલકૃષ્ણ ગોખલે જેવા ગ્રહોને પિતાન
आदर्श ( Ideal) तरी स्वा२।यी ले ६२४ना नसीम तमना । वानु: સરજાયેલું નથી છતાં પણ દરેક પુરૂષ પોતાની શકિત અનુસાર સમાજને થતકીંચિત લાભ આપી શકે છે. દરેક સુજ્ઞ જૈન બંધુ કોમના હીતને હમેશ પિતાના સાધ્યબીંદુ તરીકે स्विजारे तेसु ४-छ। विश् छु. ना. शुभं भूयात् सर्व जन्तुनाम्.
एतद्देशीय समस्त वैश्य जातिकी पूर्वकालिन
सहानुभूतिका दिग्दर्शन. विद्वानोंको विदित होगा कि-पूर्वकालमें इस आर्यवर्त देशमें प्रत्येक नगर और प्रत्येक ग्राममें जातीय पञ्चायतें तथा प्रामवासियों के शासन और पालन आदि विचार सम्बंधी उनके प्रतिनिधियोंकी व्यवस्थापक सभायेंथी जिनके सप्त बन्ध (अच्छे इन्तिजाम)से किसीका कोईभी अनुचित वर्ताव नहीं हो सकताथा इसी कारण उस समय यह आर्यावर्त सर्वथा आनन्द मंगलके शिखरपर पहुंचा हुआथा.
प्रसंग वशात् यहांपर एक ऐतिहासिक वृतान्तका कथन करना आवश्यक समझ कर पाठकोंकी सेवामें उपस्थित किया जाता है आशा है कि उसका अवलोकन कर प्राचीन प्रथासे ज्ञात होकर पाठक गण अपने हृदय स्थल में पूर्वकालीन सद्विचारों और सद्वर्तावोंको स्थान देंगें देखिये-पद्मावती नगरीमें एक धनाढ्य पोरवालने पुत्र जन्म महोत्सवमें अपने अनेक मित्रोंसें सम्मति लेकर एक वैश्व महा सभाकों स्थापित करने का विचार कर जगह २ निमन्त्रणकों पाकर यथासमयपर वहुत दुर २ नगरोंके प्रतिनिघि आगये और सभाको पोरवालने उनका भोजनादिसें अत्यन्त सम्मान किया तथा सर्वमतानुसार उक्त सभामें यह ठहराव पास किया गया कि जो कोई खानदानी गनाढ्य वश्य इस सभाका उत्सव करेगा उसको इस सभाके सभासदों (मेम्बरो) में प्रविष्ट (भरती) किया जावेगा.
इस सभा स्थापनके समयमें जिन २ नगरके तथा जिन २ जातिके वैश्य प्रतिनिधि आयेथे उनका नाम जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक ग्रन्थमें चौरासी न्या