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________________ १९११] वैश्य जातिका दिगदर्शन. . [२३५ आदि उत्तमांगा (उत्तम अंगो)कोही कटवाता है किन्तु लघु होनेसे पैरोंको नहि कटवाता है यदि बालक किसीके कानोंको खींचे मूंछोको मरोड देवे अथवा शिर भेंभी मार देवे तोभी वह मनुष्य प्रसन्नही होता है देखिये यह चेष्टा कितनी अनुचित है परन्तु लघु युक्त बालककी चेष्टा होनेसें सबही उसका सहन कर लेते हैं किन्तु किसी बडेकी इस चेष्टाको कोइभी नहीं सह सकता है यदि कोई बडा पुरुष किसीके साथ इम चेष्टाको करे तो कैसा अनर्थ हो जावे छोटे बालक को अन्तःपुरमें जानेसें कोईभी नही रोकता है यहां तककि--वहां पहुंचे हुए बालक को अन्तःपुरकी रानियां भी स्नेहसे खिलाती है किन्तु बडे होजानेपर उसे अन्तःपुर में कोई नहीं जाने देता है यदि वह चला जाव तो शिरच्छेद आदि कष्टको उसे सहना पडे जब तक बालक छोटा होता है तब तक सबही उसकी संभाल रखते हैं अर्थात् माता पिता और भाई आदि सबही उसकी संभाल और निरीक्षण रखते हैं उसके बहार निकल जानेपर सबको थोडीही देर में चिन्ता हो जाती है बच्चा अभीतक क्यों नहीं आया परन्तु जब वह बड़ा हो जाता है तब उसकी कोई चिन्ता नहीं करता है इन सब उदाहरणोंसें सारांस यही निकलता है कि जो कुछ सुख है वह लघुतामें ही है जब हृदयमें इस (लघुता) के सत्प्रभावको स्थान मिल जाता है उस समय सब खरावियोंका मूल कारण आत्माभिमान और महत्वा कांक्षित्व (बडप्पनकी अभिलाषा) आपही चला जाता है देखो वर्तमानमें दादाभाई नवरोजजी लाला लजपतराय और बालगङाधर तिलक आदि सद्गुणी पुरुपोंको जो तमाम आर्यावर्त देश मान दे रहा है वह उनकी लघुता (मम्रता) से प्राप्त हुए देश भक्ति आदि गुंणोसे ही प्राप्त हुआ समझना चाहिये. इस विषयमें विशेष वर्णनकी जरूरत नहीं क्योंकि प्राज्ञों (बुद्धिमानी ) के लिये थोडाही लिखना पर्याप्त ( काफी) होता है अन्त में हमारी समस्त वैश्य सज्जनोंसें सविमय प्रार्थना है कि जिस प्रकार आपके पूर्वज लोग एकत्रित हो कर एक दुसरेके साथ एकता और सहानुभूतिका वर्ताव कर उन्नत्तिके शिखरेपर विद्यमान (विराजमान) थे उसी प्रकार आप लोगी. अपने देश जाति और कुटम्बकी उन्नति किजिये देखिये पूर्व समयमें रेल आदि साधनोके न होनेसें अनेक कष्टों का सामना करकेभी आपके पूर्वज अपने कर्तव्यसें नहीं हटतेथे इसी
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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