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જૈિન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ
कॉलममें कही हुइ ज्ञातियां किसने स्थापित की है, और उनकि उत्पति कहांसे हैं, मेरे देखनेमें जहांतक आया है प्राय, क्षत्रीयों सेही यह जैनी बनाए गए है और शुद्ध मार्ग बतानेके हेतू अपने महान् आचार्योंने इतना कष्ट सहा है, अव जैन इतिहासको देखें तो यह शंका निवारण नहिं होती कि जब क्षत्रीयोंसे जैन बने हैं उनका खान पान एक प्रकारका हि नहिं बरन् एक साथ एक थालमें बेठकर करनेका है, जो एक धर्मके होनेके कारण एक दूसरेको स्वामि भाई कहता है, फिर इतनिसी अल्हदगी क्योंकि एक ज्ञातिवाले दूसरी ज्ञातिवालेसे शादी (विवाह ) नहिं करते एक मात्र यही कुप्रथा सारी जैन ज्ञातिमें खराबीकी
.. (४) यदि आज सर्व जैनी एक दूसरी ज्ञातिवालेसे संबंध करने लगे तो आज ८ वर्ष ते महान परिश्रम करनेवालि श्रीमति कॉन्फरंस देवीके वह उद्देश्य पूर्ण हो सक्ते हैं, जिनके निसबत सालाना जलसोमें ठहराव पास कर उनका उपयोग करनेकि तर्किबें सौंची जाती हैं. ..
(५) 'एक ज्ञाती दूसरी ज्ञाति वालेसें संबंध यानि विवाह आदि करने लगें तो क्या २ फायदे हो सक्ते हैं ? ... (अ) कन्या विक्रय सरलता पूर्वक बंध हो सक्ता हैं, क्योंकि जब सारी ज्ञाति मेंही नहिं बल्कि जैन समुहमें कन्या मिलने लग जाय तो अवश्यही में बडे जोरके साथ कह सक्ता हुं कि कन्या विक्रेता कि कम्पनिया शीघ्र ही
देवाला निकाल देगी. . (ब) वृद्ध विवाह नहिं हो सकेगा, क्यों कि जैन समुह में सूर्यकि किरणके माफिक कमल पुष्प जैसे बालकोंकों छोडकर कौन इन खंजरोंको जिनके मंहमें दांत और पेटमें आंत नहि है, अपनी प्रिय पुत्री देगा, और उसका गला घोटेगा, अगर कोई स्वार्थान्ध ऐसा करेगा तो उसका जैन ज्ञाति शीघ्र प्रबंध कर सकेगी. . . . . (क) बाल विवाह नहिं होगा, क्योंकि ऐकता होनेसे जोडा शीघ्रही मनमाना और अच्छा मिल जायगा, जिससे नियत समयपर विवाह हो सकेगा.