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________________ कुरिवाज कैसे दुर हो. [ १४१ (ड) उपर्युक्त कहे हुवे कारणोंसे विधवा विवाहका रिवाज जो अपना पाव दिन २ फेलाता जाता है. बंध हा जायगा. ११११] जो अगणित रुपे व्यय होते हैं (फ) फजूल खर्च याने नुक्ते वगेरह में और जिनके करने लिए शास्त्रोमेभी मनादि है, बन्द हो जायगे क्योंकि हर एक कि वह ताकत नहीं रहेगी कि सारे जैन समुदायको नोत सके. (ग) अनेक प्रकारके कुकार्य जो जैन युवा म्लेच्छ विद्या के कारण करने लगे हैं, जब सारी जैन ज्ञाति इनकि और धिक्कारकि द्रष्टीसे देखोगी तो इनको 'अवश्य सुकार्य में प्रवृत होना पडेगा. (ह) हरेक बालक बालिकाओंको फरजियात शिक्षा हासिल करना पडेगा क्योंकि फिर पढे हुवे जोडे अधिक पसंद किए जायेंगे. (६) इत्यादि अनेक फायदे सिर्फ यह एकही कार्यके होनेसे हो सक्ते और बडा फायदा यह होगा कि हरेक ज्ञाति में जो घडे ( तड ) - फूट पडी हुई है वह सब एक प्रकार से निर्मूल हो जायगी. तब आप जो २ कार्य जैनीयोंके हितार्थ करना चाहेंगें, बिना श्रम के शिघ्रता पूर्वक हो सकेगा और पूर्वोक्त कहे हुवे वाक्य यदि स्विकृत हो गए तो फौरन ' कूप्रथा कहो या कूरिवाज, दूर हो 'जायंगे. ' (७) इस लेख में किए हुवे पहले कॉलमके प्रश्नका उत्तर मेने अपना तरफसें ५' वें कॉलम में दिया है । परन्तु प्रश्न सर्व साधारण से किया गया है और हरेक जैनको उसपर टिका टिप्पण करनेका अधिकार है । इसलिए में प्रत्येक जैन महाशयसे प्रार्थना करता हूं कि इस लेखको चुपचाप न पढकर 'मेरा उत्तर उचित है या नहिं ? ' और आपकी क्या राय है वर्तमान पत्रों द्वारा शीघ्र प्रकट करें, या सिधि मुझे इतिला देनेसे में समाचार पत्रोंमें प्रकट कराऊंगा. ॥ इत्यलम् ॥ J. L. Ratadiya. ®
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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