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________________ १९११] कूरिवाज कैसे दुर हो. [१३९ આપન સાપન વિચાર પ્રકટ કરી આગેવાનોના અભિપ્રાય મેળવી અમુક નિશ્ચય ઉપર આવે અને તદનુસાર કેન્ફરન્સના કાર્યને મતિ આપે તે ફરીયાદ કરવાનું કારણ રહે નહિ પરંતુ આ યોજના ખર્ચાળ અને તેવા આઠ દસ આગેવાને બહાર આવવા તૈયાર ન થાય તે કંઈક અમલમાં મુકી શકાય નહિં તેવી જણાય છે. अपूर्ण. cercoccccee कूरिवाज कैसे दूर हो ? (लेखक जनकलाल रातडिया, प्रतापगढ-मालवा.) (१) आधुनिक परिवर्तन जो दुनियामें हो रहा है, और असंभव बातें जो संभव हो रही है, उसमें आर्य, आर्यमें भारत वर्ष, भारत वर्षमें क्षत्री, वैश्य और क्षत्री, वैश्यमें सबसे अपनेको उच्च और श्रेष्ट समझने वाली जैन' ज्ञाति क्यों इतनि पिछे पडी हुई जहरी निद्रामें मग्न हो रही है ? मेरेसे ही उपरोक्त प्रश्न कोइ महाशय करें तो, सब तरफ इसका उत्तर ढुंढनेसे एक मात्र जवाब यही मिलेगा कि “जैनियों में कूरिवाज घुसा पडा है," अब प्रश्न यह है कि "कूरिवाज दूर कैसे हो?" (२) जैनियोंमें पृथक् २ ज्ञातीयां जैसे श्री श्रीमाल, ओश्वाल, पोरवाड, हुम्बड, भटेवरा आदि हैं, उसही तरह यूरप, अमेरीका एवम् एशिया आदि देशोभी उनके ढंगकि ज्ञातियां है, परन्तु उनकि चाल ढाल, रहन सहन, चतुराई आदि जोजो कार्य अपने आचार्योने 'पवित्र शास्त्रों में अपने करने योग्य अंकित किए हैं, उनने उनको स्विकृत करके न करने योग्य कार्योंका त्याज्य कर दिया और अपन खुदने उसके विपरित मार्ग ग्रहण किया, उसहीका फल यह हुआ कि, अनेक न करने योग्य कार्य अपनेमें होने लगे, अब इनके निवारणका उपाय में अपनी अल्प बुद्धि अनुसार आपके सम्मुख उपस्थित करता हुं. आप उनपर गोर करके अपने जो कुछ विचार हो पेपर में प्रकट करिए जिससे जो विचार सबकों मान्य हों उसही मुवाफिक नए ‘ज्ञाति नियम' बांध दिए जावें. (३) जैनियोमें ऐसी कोई ज्ञाति नहिं है जिसके साथ प्रत्येक जैन खान पान न करता हो, अब जरा अपने जैन इतिहासपर नजर डालिएकि दूसरे
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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