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________________ 3१८) જેન કેન્ફિરન્સ હેરલ્ડ. ( 364 कोई कहते हैं कि अग्रेसरोंने अपने ४ कोई कहते हैं अग्रेसरोने अपनोमानके वास्ते यह डोल खड़ा किया जैन जातिकी स्थिति शोचनीय देखहै, इस्से जैन जातिका क्या उद्धार | कर परोपकारकी इच्छासे यह काम हो सकता है ? खड़ा किया हैं ! कोई कहते हैं जहांतक हिंदी भाषा ५ कोई कहते हैं कि हिन्दी उत्साही जानने वाले उपदेशक न नियत हो .. | उपदेशकही नहिं मिलते तेसेही ग्राहक और हेरल्ड आदि जैन पत्र हिन्दीमें संख्या बराबर नहिं होती तब कैसे न प्रकाशित हो वहांतक केसे हरेक किया जाय ! प्रान्त बालोको लाभ पहुंच सकता है ? २ इत्यादि अपनी २ अपेक्षासे योग्यायोग्य, सत्यासत्य, समझ कर तर्क बितर्क करते हैं- परन्तु जहांतक उपरोक्त सर्व सम्मति एकत्र न कि जाय, वहांतक अपनी कैसे उन्नति हो ? जैसेकी मनुष्यकी इन्द्रियां जूदा २ कार्य करती है परन्तु वेही इन्द्रियां मिलकर शरीरका कार्य बनता है वैसेही यह सार्वजनिक महत्कार्यकी हर प्रकारके मनुष्यों कि एक सम्मति होने से पूर्णोनति प्राप्त होना संभव है. इसही विचारसे मेरी अल्पबुद्धि अनुसार इस निबंधमें अपनी सम्मति निवेदन करता हूं. आशा है कि, सर्व सज्जन विचार पूर्वक मान्य करेंगे. ३ इस कॉन्फरन्सको महासभा कहो अथवा महामंडल कहो सबका तात्पर्य एकही है, अपनि महा सभाका मुख्य उद्देश यही है कि, सच्चा सो मेरा याने सच्ची बात है उसहीको ग्रहण करना न कि मेरा सो सञ्चा; अर्थात् मेने जो कहा वही सच्चा चाहे नुकसान पायक क्यों नहो, देखिये उपरोक्त दोनो बाक्य एकसां मालुम होते हैं, परंतु विचारनेसे जमिन आसमानका अन्तर है ! याने सद असद विचार रूपि दोनो उन्नति व अवनति की लाइने हैं. हस लिए जो २ प्रति प्राचीन या अवाचीन नुकसान कारक हो, छोडकर, लाभ दायक हो उसही को ग्रहण करना, इसही वास्ते सच्चा सौ मेरा यही उन्नतिका मूलमंत्र हमेशा याद रखना चाहिए. श्लोकः २ उद्यमं साहसं धैर्य, बलबुद्धिःपराक्रमम् । षडेते यत्र तिष्टन्ति, तत्र देवोऽपिशंकितः। अपूर्ण.
SR No.536505
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1909
Total Pages438
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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