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________________ १४०४). સચ્ચા સે મેરા. (१७ ॥श्री॥ सच्चा सो मेरा. . (लेखक लक्ष्मीचंदजी घीया) ॥ जैनम् जयति शासनम् ॥ ..... श्लोकः . . . याविद्योन्नतिमेदिनी हितजनी सद्धर्मनिः श्रेणिका। या सम्यक्त्वविधायिनी सुमतिदा व्यापारबुद्धिप्रदा ॥ या राज्ञामपि नीतिदा मतिमतां मानोन्नतिराकरा । सा नीयान्महती सभासुघटिता भूमंडले नारतम्॥ . : १ हमारी परमोपकारिणी श्रीमति कॉन्फरन्सके विषयमें हमारे जैन बंधुओंके जूदे जूदे खयालात हैं, जिनको प्रथम पक्ष, व द्वितीय पक्ष इन दो विभागों में अलप २ कर दिखलाए जाते हैं,- प्रथम पक्ष संख्या द्वितीय पक्ष कोई कहते हैं हर साल बडे २१. कोई कहते हैं बिना आडम्बरके जैन मंडप आदि तैयारियां करके बहोत रुपे वर्गमें कैसे जागृति हो सकती है. व्यय कर देते हैं, जिस्से कुछ लाभ | नहिं होता? . ... को कहते हैं कि, जैन श्वे. कॉन्फ-2 कोई कहते हैं बिना आफिसके कार्य रन्सने कुछ महत्कार्य करके न दिख- कैसे चल सक्ता और बिना बाईलाया बेफायदा आफिस व डिरेकटरी रेक्टरीके जैनियोंकि ठिक २ स्थिति आदिमें रुपे व्यय कर दिये! कैसे ज्ञात हो? कोई कहते हैं कि कॉन्फरन्सके | ३ कोई कहते हैं कि जहां तक जैन अग्रेसर बेदरकारी कर किसीकी नहिं.. | बंधु कॉन्फरन्सके ठहरावोंको अमलमें सुनते ईसहीसे सुधारा नहिं होता! न लावें वहांतक कैसे सुधारा हो, अग्रे सर तो टाईम व पैसा खर्च कर इत. नि कोशिश करते हैं.
SR No.536505
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1909
Total Pages438
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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