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________________ २७२ ) જૈન કેન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [ 2424 इस समय ऐसी शिक्षाकी आवश्यकता है जिससे धार्मिक और लौकिक दोनी विषयों में निपुणता प्राप्त हो और यह लाभ उपयुक्त दोनों प्रकारकी संस्थाओंसे नहीं हो सक्ता । इस स्वतन्त्र ब्रिटिश राज्यमें तमाम कॉमोने आंखें खोलदी और समयकी आवश्यकतानुसार अपने २ जातीय विद्यालय व बोर्डिग व अनाथालय खोलकर विद्याका प्रचार कर रही है। जैन समाजमें भी बड़ी भारी आवश्यकता थी कि कोई ऐसी संस्था स्थापित हो जिके द्वारा धार्मिक व लौकिक शिक्षा का साथ साथ में क्रमानुसार प्रबन्ध हो । हर्षका स्थान है कि जयपुरमें श्रीमान् वाबू अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. की प्रेरणासे " भारत वर्षीय जैन शिक्षा प्रचारक समिति" की स्थापना सन १९०६ ई० में हुई इसका मुख्योदेश भारतवर्ष में धार्मिक, तथा लौकिक विद्याका प्रचार करनेका है. उक्त समितिको कार्य करते अभी ३॥ वर्षही हुए हैं. इस थोड़ेसे अर्से में वालक वालिकाओंकी शिक्षा के अर्थ केवल जैपुरमेंही ६ पाठ शालाए स्थापित हुई और ग्रामों में ( मोजमाबाद, शिवाड़, बरवाड़े, बोराज आदि स्थानोंमें ) भी पाठ. शालाए स्थापित हुई। ___ समितिका मुख्य केन्द्र विद्यालय “ श्रीबर्द्धमान जैन विद्यालय है" और उसके साथ एक छात्रालब (बोर्डिंग हौस) भी है जिसमें विदेशी विद्यार्थी भोजनादि पाकर आनन्दखे शिक्षा पाते हैं. असमर्थ विद्यार्थीयोंको भोजनादिके अर्थ छात्र वृतियां भी दी जाती है, इस विद्यालय में जैन धर्म, संस्कृत साहित्य व व्याकरण तथा अंग्रेजी गणित धर्म अविरुद्ध भूगोल व इतिहास, चित्रकारी (ड्राइंग) आदि सब प्रकारकी शिक्षाएं उत्तम प्रकारसे दी जाती हैं शीघ्रही वैदक व ज्योतिषकाभी प्रबन्ध होगा। ____ इस समय साहित्याधीन पाठशालाओं में अनुमान ४०० लडके लड़कियोंको शिक्षा दीजा रही है समितिकी ओरसे ग्रामों में उपदेशक भेजे जाते हैं, और पाठशालाका प्रबन्ध कराया जाता है-समितिका अनुकरण करके कई स्थानोंमें पाठशालाएं खुल रही हैं। - आधीन पाठशालाओंके उत्तीर्ण विद्यार्थियों को समिति से मेडिल, ( पदक) पारितोषक और सर्टिफिकट दिए जाते है. समिति सिर्फ जैपुरमें ही शिक्षा फैलानेसे. संतुष्ट नहीं होगी. किन्तु इसका उद्देश सारे भारत वर्ष में विद्या फैलाना है और न समितिका सम्बन्ध किसी खास एक संप्रादायसे हैं. किन्तु दिगम्बर स्थानकवासी आदि जैन समाजमें निज २ आम्नायानुसार धर्म पूर्वक शिक्षाका प्रचार करना समितिका कर्तव्य है। समिति और जैन यंग मेन्स एसोसिएशन आफ इंडिया इन दोनोंकी ओरसे " जैन प्रकाशक" नामा माखिक पत्र जारी होता है. जिन के सम्पादक जैन भक्त बाबू सूर्य भानुजी वकील देवबन्द निवासि है । अब समितिले निम्न लिखित कार्य और होने वाले हैं-समितिने अपने खर्चेसे दो विद्यार्थीयोंको बंबाई भेजकर कपड़ा बुनने आदिका काम सिखलाया है, वह कार्यकुशल होकर शीघ्रही लोटने वाले हैं, वे लोक एक कारखाना खोलेंगे जिसमें अनाथ बालकोंको शिक्षा दीजायगी एक विधवाश्रम शीघ्रही खुलनेवाला है, और जैन गुरु कुल स्थापित होनेकाभी प्रबन्ध हो रहा है । अपूर्ण
SR No.536505
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1909
Total Pages438
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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