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ભારત વર્ષીય જૈન શિક્ષા પ્રચારક સમિતિ જ્યપૂર
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भारत वर्षीय जैन शिक्षा प्रचारक
समिति जयपूर
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(लेखक-फूलचंदजी मोदी) यह बात सर्वमान्य है कि धर्म व देशकी उन्नतिके लिये विद्या प्रचार मुख्य और आवश्यक उपाय है. विद्या परं दैवत “ विद्या दैवत है" यही महा शक्ति है. और यही अपार और अनंत बल है. पुरुषार्थीयों का पुरुषार्थ, योगियों का योग, बलशूरोंका शरीर बल और कवियोंका कवित विद्या सेही बढ़ता है. जापान, इंग्लेन्ड, अमेरिका आदि देशों की उन्नतिभी विद्या देवीनेही की है। ___ धर्मकी स्वतंत्रता, विचारकी स्वतंत्रता, और व्यापारकी स्वतंत्रता, जो हालमें सुधरे हुन्नरे देश भोग रहे हैं, यहभी विद्याहीका प्रसाद है. राज्यको, धर्मकी, समाज की दशाका बिगाड़ या सुधार विद्याकी अवनति वा उन्नतिपर अवलम्वित है, विद्या अधमको उद्धारने वाली है, निर्धनका धन है, अन्धोकी आंख है, और गरीव अमीर सबकी माताकी तरह प्रतिपालक है। विद्या :विपतिमें धैर्य देती है. और सम्पतिमें उदासीन रखती है. विद्या कल्पवृक्ष है. विद्या चिन्तामणि है, और जिसके पास विद्या है उसके पास सब कुच्छ है ! सारांश विद्या क्या क्या नहीं कर सक्ती और विद्यासे क्या प्राप्त नहीं हो सक्ता!
विद्याकी सहायताले ही रेलगाडी, तार, पत्र, मोटरकार और अग्निबोट आदि अनेकानेक वर्तमान समयके चमत्कार दृष्टिगाचर होते हैं।
जो मनुष्य विद्याकी सहायता विना धर्म, व देश व जातिकी उन्नतिकी आशा रखते हैं वे सचमुच भूल निद्रा में सो रहे हैं।
प्राचिन कालमें पिता अपने पुत्रोको गुरुओंके समीप गुरुकुल, मठ, चटशाळा में बहुत बर्ष तक रखके ब्रह्मचर्य सहित धार्मिक व लौकिक सर्व प्रकारकी शिक्षा दिला अथे, भारतमें पहिले विद्याका बडा प्रचारथा, इस बातको हजारों उपयोगी ग्रन्थ पुष्ट करते हैं, पहिले जमानेमें प्रत्येक मन्दिरमें शास्त्रसभा होतीथी, घर घरमें धर्मचर्चा थी, विवाहोंमें पहरावनी आदिके समय द्रव्यचर्चाका वड़ा प्रचारथा-जगह (२) त्यागी महात्मा, व पण्डित लोग धर्मोपदेश देतेथे चार विकथाओंकी जगह धर्म कथाका प्रचार था।
पाठशालाओं व दानशालाजो आदि में अपनी संतानकी शिक्षा में करोड़ों रुपिये खर्च करके पुन्य संचय किया जाता था, परन्तु शोक है. अब सब प्रकारके समाजिक प्रबन्ध खोरवले होगए. विद्याका बिलकुल अभाब हो गया, जिससे धर्म तथा जातिको बड़ा भारी धक्का लग रहा है इसका मुख्य कारण यह है कि अबतक कोई ऐसा स्कूल, कालेज पाठशाला कहीं स्थापित नहीं जहां लौकिक और धार्मिक सर्व प्रकारकी शिक्षा दी जाती हो । .
गजकीय कालेजों में लौकिक शिक्षा है धर्म शिक्षा नहीं और जैन पाठशालाओं में सिर्फ धार्मिक शिक्षा है और लौकिक नहीं।