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________________ जैन कान्फरन्स हरैल्ड. __ [ जुलाई खनेमें आया. देखिये ! कुंकुम [ केसर ] अपने जिसको एक उत्कृष्ट द्रव्य समझकर सर्वदा व्यवहारमें लाते हैं, उसमें कैसी २ घृणित अस्पृश्य पदार्थोंका भेल रहताहै. नीचे मूल और अनुवादसे सम्पूर्ण विदित होजावेगा; यहां पुनरुल्लेखसे लेखनीको दुषित नहीं करूंगा. इस केसरमें विदेशियोंने ऐसी वस्तु मिलाये हैं कि जिसका व्यवहार अपने श्रावकोंको सर्वथा निषेध है और जिसको श्रवण कर हिंदुसंतानमात्रका शरीर रोमांच होता है. ऐसी २ वस्तु लिखते हैं कि, Very frequently अर्थात् अकसर प्रायः करके भेल दीया जाताहै, और अपने ऐसी वस्तुको उत्तम समझकर भक्षण करते हैं, और ललाटमें लगाते हैं और परमात्माके पूजनमें रखते हैं. पंचमकालके प्रारम्भमेंही इह हाल है आगे न जाने क्या होगा । कैसी कष्टकी बात है जो द्रव्यका स्पर्शभी पाप है, उस द्रव्यको अपने लोग निःशंकसे व्यवहारमें लाते हैं और भगवानके मस्तकपर चढाते हैं. इस विषयपर ज्यादा लिखना आवश्यक नहि है. निम्नलिखित प्रमाणोंसे जब प्रत्यक्ष सिद्ध होताहै तब आशा है कि, हमारे सर्व जैनभाईयों इस विदेशीय अपवित्र द्रव्यको किसीप्रकारके व्यवहारमें नहि लावेंगे, और सर्व जातिसे अपनेमें इस केसरका व्यवहार अधिक है इस कारण अपनेको ज्यादा सावधान होना चाहिये. यहांके काश्मीर देशमेंभी केसर पैदा होती है. वह हिंदु राज्य है इससे उमेद है वहांकी केसरमें इस तरह भ्रष्ट पदार्थोंका मिश्रण संभव नही है. ऐसी शुद्ध केसरही श्री जिनपुजामें व्यवहार योग्य है, अन्यत्र इसके अभावमें श्वेतरक्तचंदन कर्परादि पवित्र पदार्थोंकाही व्यवहार उचित है, नि:केवल रंगत और सुगंधिके लोभसे ऐसी अशुद्ध द्रव्यका व्यवहार सर्वथा निंदनीय और महान पापका कृत्य है। जैसे हमारे ग्रामवासी सामसुखाजीने अपने मुनीम बाबूमहाराजसिंहजीके तारपुरके कारखानेकी चिनिका हाल लिखा है वैसेही हमारे पाठकोंमें अगर कोई साहेब कहांपर विशुद्ध काश्मीरी केसर मिल सक्ती है इसका हाल सर्व साधारणको प्रगट करें तो मोठा लाभ उठावेंगे. इत्यलं विस्तरेण. Extract from Simmond's Tropical Agriculture (1877) page 382. “ Account of Saffron agriculture in the Abriuzzi district of the Apennines, states that adulteration is carried out in various ways, the chief one being by mixing with it shredded beef, of which a suitable piece is boiled and then shredded into small fibres, which are stained with saffron water and then dried ”. आपिनाईन पहाडके अजि जिलेके केसरके खेतिके विवरणमें लिखते हैं कि, इसमें भेलसमेल नानाप्रकारसे कीया जाता है, बाहुल्यतासे प्रचलित रीति इह है कि, गोमांसके लच्छे मिलाये जाते हैं। प्रथम गोमांसके टुकडेको पानीमें औंटाया जाताहै पश्चात् (केसरकी तरह ) मिही लच्छे काटकर केसरके पानीमें रंग किया जाताहै, फेर सुखायकर मिलाया जाताहै. Extract from Encyclopaedia Brittanica, Ninth Edition Vol: 21 page 146.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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