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________________ १९०६] मि० अमरचंद पी० परमाया रजपुतानाका प्रयास. (८) धर्मशालाके अंदर २- काले यानि होल एसे होने चाहिये जिसमें अनानोंका मुलायजा रहे. और दो तीन कमरे एसे रहने चाहिये जिसमें बी, जाजम, मेज खुरसी, (बने तो) पलंग, बासणोंका सट आदि सामग्री हमेशा सजावट करके रखी जाय जैसी कि जोधपुरकी धर्मशाला वगैरह जगह रहती हैं. आला दरजेके महाशय उसमें ठहर कर आराम देखनेसें भंडार और दूसरे खातोंमें अछी मदद देंगे. अगर यह कमरोंमें ठहरने वालों से अमुक फी ली जावे तो भी देनेको बहुत खुश होंगे. ' (९) श्री भोयणीजीकी आबोहवा तंदुरस्त होनेसें एक छोटासा सेनीटरीयम बनाया जावे तो कई लोक उसका फायदा उठावेंगे. (१०) शेठ गोकलभाई दोलतरामकी तरफसे सामने एक धर्मशाला बन रही है. उसमें रसोंडोकी जुगत नई ढपके ऊपर होनेवाली है. वेन्टीलेशन ( हवा उजाला) की त. जवीज दूसरी धर्मशालामें जैसी चाहिए वैसी नहीं है. सो वेन्टीलेशनवाले दरवाजे बनवा'को म्येनेजर आदिने कंपा करके कबुल किया है. (११) अभी मोदीकी दुकाने इधर उधर है, उसकी एवझमें जुनि या नई धर्मशालाकी दिवालसे बाजु नई सडक बनाके वीस दुकान बंधवाई जावे तो किराया पैदा होगा ईतनाही नही परंतु यात्रिओंको आराम मिलेगा और ठगानेका डर रहेगा नही. (१२) नोकरोंके मुकाम धर्मशालाकी दिवालेके साथ लगे हैं सो बिलकुल मेले रखते हैं सो खुबसुरतीमें बडी हानी आती है. उनके मकान बाजुकी दीवालके साथ बनवाये जावे तो नजीक रहेगा, और खूबसुरती आवेगी. आराम पानेसे मंदिर में अच्छी मदद देते रहेंगे. (१३) यात्रीओंकी खबर नोकर लोक रखते रहें, ऊसकी हमेश ताकीद रहनी चाहीये ताकि उनको कष्ट कमी पडता रहे. (१४) वासण, गोदडे भादिका किराया अभी जो लिया जाता है वो बहुत ज्यादा समझा जाता है. शिआलाकी मोसममें गरीब यात्री किराया. बचानेको ओढने बीछानेका कम लेनेसे शरीरसें बीमार पडते हैं. (१५) भोयणीजीमें एक छोटीसी लायब्रेरीकी पूरी जरूरत है, जिसमें पुस्तक हैं, भौर कुछ पेपर आया करें. इस वखत श्री भोयणीजीकी यात्रा करनेको बहोतसे महाशय मोरबीकी स्थानकवासी कोन्फरन्समें आये थे, और श्री तारंगाजी पंचतीर्थी जानेको कहते थे. क्या परंपरा ! जोधपूर-मी. परमार अपनी फेमीली साथ जोधपुर गये. वहां कितनेक आगेवानोंसे मिलकर जैन डिरेक्टरीके लिये सलाह की, मुताजी श्री बखतावर मलजी (प्रेसीडेंट, पहेली जैन कोन्फरन्स ) पूरा परिश्रम करते है. और बहोत हाकर्मोके नाम पत्रव्यवहार कर रहे हैं. साधु मुनिराजके कम विहारसे ओसवाल जैन ढीले हो रहे हैं. बाडमेरके पास श्री नाकोडी पार्श्वनाथजीका मंदिरका जीर्णोद्धार हो रहा है. और कई मंदिरमें जरूरत है.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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