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________________ सद १४ी गुरीका सलाव जहाँ जैन मंदिर हैं स्वामि धत्सल, पूना होता है। श्रीसंघका 'दर्शन कर अनिंद पाया. एक सलाह यह हुँ कि कोन्फरन्सकी तरफसे जोधपुरकी स्टेंट को सालको अरजी की जावे तो सब हाकमोंकी वो क्रपा करके हुकम तहरीरी देंगे" तो मारवाडकी मर्दूम सूमारी फोरन हो जायगी. यहाँ यतिमी श्री जुहारमलजी बहुत वृद्ध और सुशील और महा विद्वान् है. अच्छा संग्रह पुस्तकोंका रखते है. श्री मणिविजयजी जो श्री तपगच्छके श्रीपूज्यजी महाराजके प्रधान है, बडे योग्य और विद्वाम है. भट्टारक पंडित श्री ऊमेद दत्तजाने श्रीदादाजीकी आरसकी छत्री बनाई है. यह शास्त्रज्ञ और नामी राजवैद्य है. स्थानकवासीके साधु श्री रामचंद्रजी बडे विद्वान योग्य पुरुष थे ये काल कर · गये.. मूर्तिको बडा •भादर करते थे. अपने शिष्यों को व्याकरण, अमरकोष, काव्य आदि प्रथम शरु कराया था. "जोधपुर से १६ कोस औशियानमरी जहाँसे ओसवाल कहलाये दर्शन योग्य स्थान है. - होलीकी धामधुम वहां बहोत होती है. समजदार जैन भाइ शामल नहीं होते बल होलीके दिनोंमें एक मंडली बनकर श्रीकानमलजी पटवा आदि श्री फलोदी तीर्थपर जाकर "भक्ति करते है. . .. अजमेर-मि. परमारके अजमेर जाकर एक सभा राय . शेठ शोभागमलजी ढढा बहादूरके प्रमुखपणामें शेठजी किसतुरमलजी भडकतिओंकी हवेलीमें की. अंदाज दो घंटे तक पाटणकी चौथी जैन कोन्फरन्स का दिग्दर्शनं या व्याख्यान किया. कोन्फरन्सका सचोट चित्र रजु किया कि कोन्फरन्समें हम गये नही एसा पश्चाताप हरेक जैन करने लगे, और, भवि•ध्यमें जानेका निश्चय किया. विद्यौन्नति ओसवाल जैन सभाके जनरल सेक्रेटरी शेट हीराचंदजी सचेती, (जो श्री फलोदि प्रथम कोन्फरन्समें एक अगुआथे ) और सेक्रेटरी भि. शोभागमलजी हरखावत, महेता शोभागचंदजी, महेता देवकरणजी आदिने अच्छा विवेचन किया. बहुतसे महाशयोंने होलीपूजा नही करनेका मंजुर किया. : अजमेरमें विद्योन्नति ओसवाल जैन पाठशालाका काम अच्छा चलता है. ईग्रेजीहिंदी- उर्दु-धर्म शिक्षा पढाई जाती है. कोर्स अलाहाबाद युनीक्रसीटीका है धार्मीक शिक्षा स्थानकवासी, मंदिरमार्गी और तेरा पंथाओंकी अलग २ पढाई जाती है. गवर्नमेंट हाई स्कूलके हेड मास्टर मि. नरसींगदासजी इस शालाके ईन्स्पेक्टर है. तरक्की, प्रबंधके लिये पूरा परिश्रम करते हैं. कालेजके संस्कृत के प्रोफेसर ,पंडित दामोदरजी धार्मीक शिक्षणकी पढाईकी देखरेख रखते हैं. वे महा विद्वान् और जैन शेलीके जानकार है. महा वार ७० .रुपयोंका खर्च है. जो. चंदासे एकत्र होता है. यद्यपि स्थानकवासी और मंदिर मार्गीओंका धर्म शिक्षण अलग २ दिया जाता है तोभी स्थानकवासी भाईओंने एक अलग पाठशाला अभी खोलदी हैं और पूरानी पाठशालाको चंदा देना बंध किया है. शेठजी श्री हीराचंदजी सचेतीने एक धर्मशाला स्टेशनके सामने अंदाज पचीस हजार रुपयोंमें खरीद करके जैन 'मुसाफरोंको' मफत उतारनेका प्रबंध करके बडी भारी धर्मकी सेवा बजाई है. धर्मकार्यमें अच्छा लक्ष देते हैं. . .
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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