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________________ जैन कान्फरन्स हरेल. [जन. भोयणी-कुछ रोज ठहर कर कारखानेकी हिसाब देखा, बों संतोषकारक माल्म दुवा. अंदाज पचपन हजारकी आमदनी से बहोतसे रुपये दूसरे मंदिरोंको आरस वगैरह देनेमें खरच किया जाता है. जो जो मंदिर और तीर्थमें अच्छी बचत रहती हो, चाहिये किश्री भोयणीजीकी माफक वरताव करके दूसरे मंदिरोंका जीर्णोद्धार करावे. कितनेक आगेवान यात्रीओंकी खानगी सलाह करके कितनीक हिदायत की गई. और मुंबई समाचारमें श्रीभोयणीजी बाबत एक ऊमदा लेख लिखा. उनकी और कई महाशयोंकी रायमें नीचे लीखे माफक कितनेक सुधारे किये जाय तो श्री तीर्थ ओरभी तरक्की करेगा. (१) अगर बन सके तो श्रीमंदिरकी चारों तरफवाली धर्मशाला तोडके श्री भोयणीजीके मंदिरको बावन जिनालय मंदिर बनाया जावें. बावन देरडी यह धर्मशालाकी जगह कायम कि जाय. बहोतसे आदमी एक २ देरडी अपने नामसे रख लेंगे. ईससे बहोत आसातना दूर हो जायगी. (२) जो ओरडी केसर धीसनेकी है वह बहुत छोटी है. इतनी छोटी कोटडीमें कपडा बदलनेका कार्य होता है. इससे बडी भीड होती है, बलकि मुलायजा शरम नही पाली जाती. टिलक करना और कपडा बदलेनी कोटडी एक औरभी बनाई जावेः कितनेक कपडे भी फटे हुवे रहते हैं, सो वह आशातना दूर होनी चाहिये. केसर किसीको घसना हो तो एक अलग ओरडी बनवानेसे अपने हाथसें कई आदमी जो केसर आप घीसता पसंद करते है, उनको सुबिता होगा. (३) गरम पाणीकी कोई तजवीज श्रीभोयणीजी जैसे तीर्थमें नही है सो ताजुब है. गरम पाणीका एक अलग रवाना किया जाय तो. बहोत कुछ आमदनी हो सकती है. मुंबईमें भाटीओंकी ममादेवी कांदावाडीमें है, उसमें जनाना और मरदाना नहानेकी अलग २ तजवीज और कोटडीसें की है. ऊसमें गरम पाणीका नल हर खोलीमें लगाया है जो पानी एक बाईलरमेंसे आता है. साथ दुसरा भी नल है. ऐसेही कोई तरीका दाखिल किया जावे तो यात्रीओंको आराम मिलेगा, भक्ति अछी होगी, और कारखानेका बडा यश होगा. हरेक आदमीको अपना २ पाणी अलग २ करना पड़ता है, उसमें बहुत तकलीफ रहती है, मालसके सबबसे ठंडे पाणीसे नहोनेसें भाशातना होती है. (१) भीतरके दरवाजेके कटेरोके बडा बडे अक्षरोंसें तकता लगना चाहिये कि प्ते यह दरवाजेसें बहार खोले जाय. (५) कारखानेमें छोटासा देशी औषधीका एक दवाखाना खोलना बहुत जरूरी है. कई आदमी बीमार होते है. | (६) स्टेशनसे श्रीमंदिर तक एक पकी सडककी अती आवश्यकता है. (७) स्टेशनपर बहारके मजुरोंको आने देते नही है. और स्टेशनपर लाईसन्स कुली है नही सो मुसाफरोंको बोजा हाथसें उठाना पडता है. ट्राफीक सुप्रीटेंडंटको अरजी करनेसे बहारके मजुरोंको महावारी फ्री पास दे देवें ताकि वे लोक भीतर जासके और टिकीटकी चोरी होनेका डर रहे नही. लंबा पलेट फार्म भी करनेके लिये अरजी की जावें.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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