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________________ जैन कान्फरून हरल्ड ... [जून अशुद्ध आचार में से फिर लोंकाजीने ढुंढीयों के कोलके मुवाफिक शुद्ध प्ररूपण की है, इसही कथन पर हमारी तरफसे यह प्रश्नथा की इस सताईस पाटके कुबुल कीये हुवे शुद्ध आचारके मुवाफिक चलनेवाले आचार्योंके समयमें मूर्तिपूजा सिद्ध होजावे तो फिर सम्वेगी और ढुंढीयों के कुछ झगडाही बाकी न रहै. परन्तु हमारे मित्र “जैनोदय" को किसी जरीयेसे मालूम हो गया होगाकि इस सताईस पाटके समय की मूर्तियां कई जगह मौजूद हैं और राय सेठ चांदमलजीके कथनको स्वीकार किया जावे तो ढुंढीयोंकी समाजको पूरा नुकसान पहुंचताहै. इसही कारण उसने फोरन ही खुले हुवे शद्बोंमें कुल ढुंढीया समाजके नायक पर झूठा होनेका हमला किया और इसही बातके प्रगट करनेपर संतोष नहीं किया कि उनकी बातपर समस्त स्थानक बासी कोमको विश्वास नहीं है बल्कि उनके माने हुवे २७ पाटके शुद्धाचारमें भी दोषण लगाया. हम हैरान है कि हम सेठ चांदमलजीके कथनको सच्चा माने या "जैनोदय" जी के बचनको हम नहीं कह सकतेहै कि इस प्रकारकी घर की फूट का अन्तिम नतीजा क्या होगा परन्तु यह जुरूर खयाल होता है कि अगर ऐसे अंदरूनी खयालात स यह लोग बुर्दबारी को सलाम कर बैठेंगे तो आपसमें कुसम्प बढकर बजाय उन्नत्तिके अवनतिके कारण होंगे.' हम खरे अतःकरणसे प्रार्थना करते हैं कि आयंदा इस तरह का हमला आपसमें एक दूसरे पर हरगिज नहीं करेंगे. सहचारी " जैनोदय" की रायके मुवाफिक श्रीमहावीर स्वामींके पश्चात २७ पाट तकभी कितनाही अशुद्ध आचार घुस पडाथा परन्तु इसपर विशेष टीका नहीं कीहै. बहतर हो कि जिस तरह राय सेठ चादमलजीनें शुद्ध आचारकी हद्द २७ पाट तक कायम की है " जैनोदय" जी भी इस सताईस पाटमेंसे कोई हद्द शुद्धाचारकी जुरूर कायम करें और यहभी बतलावें कि किस किस्मका अशुद्ध आचार किस पाटके वक्त किसने जारी कियानिगमशास्त्रसे हम अपनी वाकफियत नही रखते है. इस लिये इसके बारें भी खुलासा किया जावे कि यह किसका बनाया हुवा है, किस साल सम्मत्में लिखा गयाहै. “ साकल " साधू . किसका चेला था उसके पाटपर कोन हुवा, और उसने किस साल सम्मत्में किस मूर्तिपूजक साधूके साथ क्या विवाद किया और उसका नतीजा क्या हुवा. जबतक इन बातोंको खुले तोर हम अपने मित्रसे न सुन लें हम जियादा टीका नहीं कर सकते हैं. आशा है कि हमारा सहचारी दयाभावके साथ इसका खुलासा हाल लिखेगा. ४.-आगे बढकर " जैनोदय" जीका कथन है कि " लोकाशा, लखमसी सेठ तथा लीबडी विषयनी हकीकत झूठीज छे. कारण के ते बखते लीबडीनी हयातीज न हती"-जिस तरहपर हमारे मित्रने राय सेठ चांदमलजीको झूठा करार दिया उसही तरह एक झूठा तीर हमारी तरफभी छोडा और बिला किसी सुबूत और पुरावेके एक शब्दमें हमारे लेखको हवामें
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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