SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०६ ] राय सेठ चांदमलजी और “जैनोदय ". लडती है उसही तरह सभा के नायककी बुद्धिके साथ सभाका काम चलता है, नायक के फैसलेपर सबको आधार रहता है, मालूम नही कि यह Suicidal policy हमारे मित्रने किस तरहपुर अखतियारकी है. इस तरहपर राय सेठ चांदमलजीके बचनोंको असत्य मानने से उनकी बहूत हंतक हुई और सिर्फ उन्हीकी नही बल्कि, उस कुल समाजके दिल दुखेंगे कि जिनकी सभा के वह नायक हुवे थे. स्थानकवासीयोंकी जिस कदर संख्या है उसमेंसे स्थानक वासी डाहे पुरुषोंने रायसेठ चांदमलजी में प्रमुख के गुण देखकर उनको अपना नायक बनाना पसंद किया होगा. फिर उनके बचनोंको सत्य न समझना या उनके बचनों को ‘" समस्त स्थानकवासी कोम " का स्वीकार न करना कितने बडे आश्चर्यकी बात हैं ? प्रमाणीक मनुष्यको महासभा के प्रमुख के पदकी इज्जत आबरू देकर फिर खुले तौरपर उसके शब्दोको सत्य न मानना या उसके शब्दोको समस्त समाज के स्वीकार न करनेकी पुकार उठाना उस प्रमाणीक मनुष्य और उस समाजकी अंदरूनी क्या व्यवस्था दिखलाने वाला है • हम पाठकवर्गके मुनसिफीपर छोडते हैं. अगर अपने प्रमुखको स्थानकवासी झूठा समझते हैं। और उसके शब्दोंपर उनको अभीसे विश्वास नही है तो हमको खयाल होता है कि आयंदा इस महासभा के प्रमुखका पद धारण करते हुवे कई महाशयोंको बडा भारी विचार होगा. जहां तक हम खयाल करते है राय सेठ चांदमलजीनें जुरूर अपने धर्मकी आमनायके मुवाफिक बहुत गोर और खोजके साथ अपनी स्पीचको तयार किया होगा, इसपरभी अगर उनके स्वामि भाईयों को उनके वचनपर विश्वास नही था तो बहतर होता कि अब इस दिल दुखानेवाली पुकारके उठाने के बजाय अवलही इनकी स्पीचकी कापी मंगवाई जाकर उसके एक एक अक्षरको अच्छी तरह देखा जाता और अपने मतलब के विरुद्ध जो शब्द या इबारत होती, उसको फोरन निकाल दिया जाता. हम आशा करते है कि आयंदा इस तरह के लेखसे 'हमारा सहचारी परहेज करेगा और राय सेठ चांदमलजी की जो इस तरहपर तोहीन की गई है उनके साथ हमदर्दी प्रगट करके चाहते हैं कि वह इस हमलेको एक नाकिस हमला समझकर इसपर कुछ जियादा खयाल न करेंगे. ३– राय सेठ चांदमलजी के कथनको असत्य करार देकर "जैनोदय" जी अपनी सत्य बात इसतरह प्रगट करतेहैं: - " भस्मग्रह महावीर स्वामी मोक्ष पहोंच्या वखते बेठो छे, जे वात मूल पाठ उपरथी सिद्ध थायछे अने सतावीस पाटो सुधि शुद्धाचारज हतो ए वास पण असत्य छे. ते वखते केटलोक अशुद्ध आचार पण हतो. निगम नामना ग्रंथ उपरथी सिद्ध थाय छे के तेटला वखत सुधिमां साकलनामना साधुए मूर्ति पूजको साथे विवाद चलाव्यो हतो. " भस्मग्रहकी मोजूदीमें श्री महाबीर स्वामी मोक्ष पधारे इस बातको सब जैनी मानतें हैं और राय सेठ चांदमलजीनें भी अपनी स्पीच में इसही बातको माना है, परन्तु इस बातको मानवे 'हुवे उम्होने २७ पाट तक आचार शुद्ध मान कर आयंदा आचार अशुद्ध माना है कि जो
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy