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________________ . जैन कातकरार हरेक : ..... जब सेठ चांदमलजीने इस रायको प्रगट किया और अगर यह रामः गलतथी तो उसवक्त क्या उन आठ दस हजार दुंढीयोंमेंसे किजो महासभामें इकट्ठे हुवेधे, किसी को भी यह बात नही सूजी कि सेठ चांदमलजी के बचन सत्य नहीं हैं ? और अब इतने दिनों के बाद हमारे सहचारी को यह बाद कैसे सूज पडी ? इस बात पर " जैनोदय" जी को उस समय ही गोर करना उचित था कि जब उन्हों ने अपने पत्र में प्रसिडेंट की स्पीच छापी उस स्पीच के छापने के वक्त ही मिस्टर औडीटर फुटनोट ( Foot-note ) में अपना नोट आफ डिस्सेंट ( Note of dissent ) लिख देते तो माना जाता कि इस स्पीच के साथ किसी खास एक मनुष्य को या कई मनुष्यों को इत्तफाक नहीं है. अगर इस स्पीच को पकड में आनेकी वजह से असत्य प्रगट करके हिफाजतकी जगह टटोली जाती है, तो क्या अजब है कि किसी दुसरी काररवाई पर नजर डालकर उसके अवलोकन के समय उसकोभी असत्य और अमाननीय करार दी जावे ? अगर ऐसा ही होगा तो तो जिस कदर कारवाई इस ढुंढीयों की महासभा में हुई है, वह सब असत्य ही करार पावेगी. तो फिर इस असत्य कारर वाई के वास्ते क्यों हजारो रुपये खर्च के सभा इकट्ठी कीगई ? अगर सेठ चांदमलजी के शब्दों पर किसी को विश्वास है और किसी को नही है, तो शुरूमें ही जो कोशिश सम्प बढानेकी है उसमें धक्का लगा और सम्प की जगह जो कुप्तम्प भिन्न २ स्थलों में बैठा हुवा था वह हजारों कोसोंसे रेल द्वारा मुसाफरी करके अपने झंडे को कोमकी महासभामें अच्छी तरह फहराया ? आम कायदा यह है कि ऐसी २ महासभावोंमें जोजो कथन किये जाते हैं उनमें किसी भी तरह की खामी हो या अपने मत्तसे विरूद्ध हो तो उसपर अवश्य वादविवाद करके उसको त किया जाता है. अगर किसी कथन पर कोई चरचा नहीं उठाई जाती है तो वह कथन सबका स्वीकार किया हुवा माना जाता है. लोर्ड करजन ने जब अपनी सीचमें हिन्दूओं और उनके शास्त्रोंपर अघटित टीका की तो तमाम हिंदुस्थानमें उनकी इस राय पर आक्षेप किया गया. बल्कि एक अखबारनें तो इतनाभी लिखाकि लार्ड करजन के कहने के मुवाफिक हम झूठे हैं परन्तु लार्ड करजन झुठों के बादशहा हैं. इसकी तरह पर जब राय सेठ चांदमलजी ढुंढीया होकर अगर ढुंढीयों की जड काटनेको वह शब्द कहेथे कि जिनको आज " जैनोदय " जी असय कहते हैं तो उनके खिलाक उसही वक्त पुकार करने को किंसने रोका था और ऊंचे शद्वों के साथ इस वात को उस ही वक्त क्यों नहीं किया गया कि यह राय प्रसिडेंट की समाज को नुकसान पहुंचानेवाली है. ___ हमको अवश्य कहना पडेगा कि सभाका नायक हमेशा विद्वान, बुद्धिवान, धर्मात्मा, धर्मग्य, जानकार और सब तरहपर लायक हो वह चुना जाताहै, उसके बचन प्रमाणीक होते हैं, उसके कथनपर कुल काररवाईके अच्छे बुरे निवडनेका आधार रहताहै, वह कुल समुदायका स्पोक्स मैन ( Spokesman ) होताहै, जैसे फोजी अफसरकी रहनुमाईपर फोज
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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