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________________ राय सेठ चांदमलजी और "नोदय". झूठीज छे, कारण के ते बखते लीबडीनी हयातीज नहती. आवी चर्चाओथी अमे हमेश दूरज रहवा मांगीए छीए कारण के आम थवाथी बन्ने पक्षोमा मका, वैर उत्पन्न थाय छे, अने व्यवहारमां विच्छेद पडे छे." : च्यूं कि इस " जैनोदय' के लेखमें रायसेठ चांदमलजीके बचनोंपर कटाक्ष किया गया है और हमारे मतलब को मी उलटा समझा गया है. इस लिये हमको इस लेखपर दृष्टी डालकर यथोचित विवेचन करनेकी जरूरत हुई. हमारे मित्रका यह खयाल कि " हरैल्ड' का मन सब सिर्फ कोनफरेंस की खबरों को ही प्रसिद्ध करनेका है और दूसरी तरफ द्रष्टी डालनेका नही है बिलकुल गलत है. आम अखबारके कायदेके मुवाफिक हर स्वतंत्र पत्रको अपनें खयालात खुले तोरपर प्रगट करनेका अखातयार है. और इस किस्मके विषयोंपर सिर्फ नये वर्षके शुरू होनेपर ही चरचा नहीं उठाई गई है. बल्कि पिछले वर्षों के अंकोको देखनेकी महनत उठाई जावे तो इस तरहका आक्षेप करनेवाला अपने लेखपर खुद लज्जित हो सकताहै. हमारा खयाल हमेशा इत्तफाक बढानेका रहाहै और आयंदाभी यह ही इच्छा है कि हमारे इसही खयालको हमेशा पुष्टी मिलती रहै और इसही कारण इस किस्मकी बातों पर अपना लक्ष देकर हमेशा इस बातको चाहते हैं कि किसी न किसी तरह जो भेद इन दोनों फिरकोंमें पडाहुवा है इसका निर्णय होकर दोनों फिरके एक होजावें तो अच्छाहो. पस इस किस्मके लेख लिखने में और दोनो फिरकोंको तहकीकात करके एके नतीजेपर आनेकी सूचना करने में कोई मनुष्य हमारे लेख पर "खंडन मंडन" का आक्षेप नहीं लासकताहै. " खंडन मंडन" की पंकतीसे हम खद हमेशा दूर रहना पसंद करतेहै. हमारा लेख सिर्फ दोनों फिरकोकों सूचनारूप है और अबभी हम आशा करते हैं, कि इस सूचनाके मुवाफिक हमारे दोनों फिरकोंके भाईबंद मुर्तिपूजाके बाबत जुरूर कमिशन निकालकर निर्णय करेंगे. २. हमको जुरूर कहना पडेगाकि हमारे सहचारीने इन शब्दोंको लिखकर कि:-"रायसेठ चांदमलजीना भाषणना शब्दों उपर कोई टीका करी नथी ते उपरथी समस्त स्थानक बासी कोम शब्दो स्विकारेछे अने अ शब्दो सत्यज छे सेम कोई मानवानुं नथी " रायसेठ चांदमलजी की हतक कीहै, उनको एक झूटा आदमी करार दियाहैं और इस रायको प्रगट करके इस बातको जाहर करदिया है कि ढुढीयाकी महासभाके प्रसिडेंट के कथनपर दुढीया समाजको बिलकुल विश्वास नहीं है. न उनके कथनको समस्त स्थानकवासी कोमनें मंजूर किया है. हम आश्चर्य करतेहै कि अवल तो हमारे सहचारीको इस तरह की राय प्रगट करनेका और समस्त स्थानकवासी कोमकी तरफसे इस बात को जाहर करनेका की उनहोनें इन शब्दोंको नही स्वीकार किया है अखतियार कहांसे मिलता है. दूसरे
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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