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________________ जैन कान्फरन्स हरेल्ड. नंबर ग्रंथ नाम कर्ता . Lश्लोक व्याख्या व्याख्या श्लोक रिमार्क कर्ता देवेंद्रसरि नव्यकर्म ग्रंथ कर्मविपाक कर्मस्तव बंधस्वामित्व षडशीति शतक वृत्ति स्वोपज्ञ वृत्ति । १८८२ ८३० अव चूर्णि ३८५/१८१३७ वृत्ति २८००/वृत्ति ४२४० - वर्ग २ जो १/ जीवसमासं वृत्ति मळ. हेमचंद्र ६६२७ नव तत्व देवगुप्त भाष्य I नवांग अभयदेव भाष्य वृत्ति | यशोदेव । २४००/ सं. ११७४ ३ | संग्रहणी बृहत्संग्रहणी | जिनभद्र । ५३० वृत्ति शालिभद्र २८००/ सं. ११३९ मलयगिरि लघु संग्रहणी मल. देवभद्र ३५०० जंबू द्वीपसंग्रहणी ४ क्षेत्र समास बृहत्क्षेत्रसमास वृत्ति मळयगिरि ७८८७). सिद्धसूरि । ३०००/ सं. ११९२ देवभद्र । १००० सं. १२३३ ल. वृ. - - लघुक्षेत्रसमास । वृत्ति द्वि. हारभद्र ५११ क्षेत्रसमास संस्कृत उमास्वाति २८८० क्षेत्रसमास वर्ग ३ जो. वत्ति रत्नसिंह • '३ .१ | खंडषबत्रिंशिका '२/निगोद षट्त्रिंशिका पुद्गल षट्त्रिंशिका ४ | बंध षट्त्रिंशिका ५ | अंगुलसत्तरी , - मुनिचंद्र । ६ | पाक्षिकसत्तरी . ७ वनस्पतिसत्तरी - . |||
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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