________________
શ્રી મહાવીર સ્તોત્ર
૨૫ श्री महावीर -स्तोत्र -
[ अपशभां-मतिप्राचीन ज्य. ] धरि सिद्धह जाउ जिणु । चउवीस वंउजु वीरु ॥ सुरराई विणत्तु जिणु । तुहुं तव चरणु चरेसि ॥ सो पणमतहं भवियजण । (भवियाण) सीयलि होइ अइदारुण उवसग्गु तहिं । बारह वरिस सहेसि ॥१६॥
सरीरु ॥१॥ हउं अच्छऊ तुह पायतलि । तुहु परिचतु निसंगु ॥ जसु कारणि संगम सुरउ । पडियउ भवसंसारि ॥ संगमकह पहवं ताह । जिंहऊ भंजउ मग्गु ॥१७॥ पणमउ वीरु मरइ करहु । मूढा घर वावारि ॥२|| तो बोलेइ तियलोयगुरू । इंद ण होसइ एव ॥ अवइन्नउ पुप्फुत्तरह । सामिउ चरिमजिणिंदु ॥ अन्न निसाइ नाई जिउ । कम्मु खवेसइ एउ ॥१८॥ माहणकुलि कम्मह वसिण | चितइ एव सुरिंदु ॥३॥ सहसनयणु सोहम्मि गउ । जिणु विहरेवइ लग्गु ॥ आणसिं सेणाहिवई । कुंडग्गामि जाएवि ॥
सामिउ तहिं पविसणु करइ। जहिं देखइ उवस्सग्गु ॥१९॥ तह गप्भह अवहरिउ जिणु । तिसलहपुरि मिल्लेवि ॥४॥ अणवार परमेसरइ । पाइहि रदी खीरि ॥ सामिय तुह अच्छेराई । महियलि हुवां वियारि ॥ गोयालिंआ रुद्वेण । सा अहियासेय वीरि ॥२०॥ पुष्व क्विय कम्मह वसिण । णवि छुदृइ संसारि ॥५॥ परमाणु झायंताह । तहिं आईड आहीरु ॥ सहि पहिलं गप्भाहरणु । पुण उवसग्ग सयाई ॥ बलद भलाविय जिणवरह । ते नवि जोयऊ वीरु ॥२१॥ दीरह पढम समोसरणि । न पडिबुद्धऊ कोइ ॥६॥ अप्पणु चारिते गया । पुणु आइउ आहीस ॥ चंद सूरस्स विमाण तहिं । स हुं सपरियणि अवइण ॥ पुछइ बलद कहिं गया । ऊत्तर देइ ण वीस ॥२२॥ अइसइवंतह जिणवरह । पणमेइ पाय सुरिंदु ॥७॥ सा आरुठ्ठउ नियमणिण । लेविणु खयरस लरक ॥ णव मासिहि अह दिणिहिं । जायउ तिहुयणिणाहु। कंन्ने खोट्टेय जिणवरह । आहीर निभिश्च ॥२३॥ पसविय सिद्धथ्यह घरणि । भवणि महुच्छउ जाउ ॥८॥ कंन्ने खिल्ला खोट्टणिहि । वेयण जाइ महंत ॥ हरिणगवेसि लइउ जिणु । तिसलइ सोयणि देवि ॥ सो अहियासइ वीरजिणु । मणुण चलहनहमत ॥२४॥ सकि उच्छंमि णिवेसियउ । मेरुतिहार जाएवि ॥९॥ भारं सहस्स चक्क सिलासंगमकई पभित्त ।। पिखिवि बालउ लहुयतणु | चिंतइ एव सुरिंदु ॥ सरिसवमित्त ण मणु चलिऊ । जनु जाणु महि खुत्तु ॥२५।। केंच सहिसइ जल णिवहु । एक्ककाउ णिवडंतु ॥१०॥ जिणु रयणी एकइ समइ । वीस सहइ उवसग्ग । चलणांगुलई मेरु पुणु । जाणिउ सक्कह भाउ ॥ ते अहियासिय वीरजिणि । छिन्निवि चउगइ मग्गु ॥२६॥ बालत्तणि संचालियऊ । चिंतइ णियमणि राऊ ॥११॥ पापकम्मु खोडेवि जिणु । पुणु उप्पाडिउ नाणु ॥ पेखिवि बाल अणंतबलु । आसंकिउ सुरिंदु ॥ जोयालोय पयासियउ । चउदहरज्जुप्रमाणु ॥२७॥ दुछ दुछ मइ चिंतियउ । पुणु पुणु णमइ सुरिंदु ॥१२॥ बारह जोयण वहवि गउ । मगहा गोबर गामि ॥ जिणह करवितो मजणउं । पुणु जणणिहिं घरि णेवि॥ देविहि रइउ समोसरणु । तहिंउ वविठ्ठउ सामि ॥२८॥ सुरसाई परितु ठिण । वीर गउं तसु देवी ॥१३॥ एगारह गणहर जिणह । अणइ चारिसहस्स ॥ तीस संवछर देव तई। रायला परिमुत्त ॥
चउहि सएहि समग्गला। वीरिं दिक्खिकय सीस ॥२९॥ पडिबोहिउ दिरका समइ । लोगंतिय संपत्त ॥१४॥ पूर मणोरह जिणवरह ! लद्धऊ गोयभु सीसु ।। एकु जसोया वल्लहिय । अनु पियदसण धूय ।। बोहिवि मेइणि भवजलहि । सासय सुह संपत्तु ॥३०॥ णिग्गउ मिल्लिवि रायसिरि । वीरि दिरक लइय ॥१५॥ ॥श्रीमहावीरस्तोत्रं समाप्त ॥ शुभंभवतु ॥
[ આ સ્તોત્રને ચાલુ ગૂજરાતી ભાષામાં મૂકી તેનું ગુજરાતી ભાષાંતર કરી મોક્લવા પંડિત લાલચંદભાઈ યા અન્ય કપા કરશે તે આવતા અંકમાં પ્રકટ કરવા ભાગ્યશાલી થઈશું.
तत्री.]