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ષ્ટ ૧૯૮૩ જનયુગ ૪૮ से साथ भिरा यह भाषिक हत्याis इस समय दिगम्बरों को चाहिये कि वे पालीताना की यही पुसीसा वाया था लश यात्रा का मार्ग अवश्य खोल दें......दिगम्बरों को वहाँ
साथीने अभे व्यु त पधी भने पर एक मेला भी करना चाहिये। यह अवसर दिगछ. 6 बात ही स्थिति ५२ सावती लय म्बरों को हाथ से नहीं जाने देना चाहिये।" छ, हिजरी साधयाय श्वेतांबर मायाना ५२ हम जैनगजट के संपादक महाशय की उपरोक्त सामुहाये is अरे मारा। मोटर ५ छे राय से बिलकुल सहमत नहीं हैं। यद्यपि हम मानते ५२तु पोताना शुं is या न ४ है कि श्री ऋषभदेव हत्याकाण्ड के सम्बन्ध में वतामन्यु तेभा पोताना होष ते मनवामा निमि- म्बर जैनसमाजने. अपना कर्तव्यपालन नहीं किया है, ભૂત હોય તો હતા તેને તે કંઇ પણ ઉલ્લેખ
प्रत्युत जानकारी से या बिना जानकारी के उसकी ओर यां, १२वामां आवत नथी. मे हाथ कार ताक्षी से हत्याकाण्ड के बाद में भी ऐसी २ कार्रवाइयों की ५ती नथा' अभ तथा स्टेटना मशिस गई हैं और ऐसे प्रस्ताव पास किये गये हैं कि जिन्हें રોના કાર્યને વિચાર કરતાં જરૂર માને જ.
देख कर महान् दुःख हुये बिना नहीं रह सकता और Hश माध्यामेरे सभाणा श्वेता जिनको देखते हुये यदि दिगम्बर समाज में श्वेताम्बर सामे या छत अयोग्य, भतिशयोति पूर्ण मत समाज के प्रति अधिकाधिक क्षोभ फैले तो कुछ सुविहीन छ मेम अमाने सारे छ. ' सारखं माधु आश्चर्य नहीं. किन्तु इतना सब होने पर भी जो राय छ भेटले विशेषमा शत्रुभयनी यात्राना त्या श्वे. जैनगज़ट ने दी है, उसे हम बिना पूरे सोच विचार तमिरासे यों के मेले मनाथा वि३६४ापणे के दी हुई और समाज के लिए बहुत हानिप्रद समहिमशमाये या १३२ , तार पी. भी, झते हैं । लोकमत के प्रवाह को समाचार पत्र ही नियंभुनशी भिटीमा नाडं आप धु, भने पछी त्रण किया करते हैं अतः पत्र सम्पादकों से यही ति२२७१२ ताव मा वगेरे सा हिमपरला. आशा की जाती है कि वे अपने आपको क्षुद्र साम्प्रध्यानां त्यो अभने तो अनिष्ट भनाइशा सूयवे दायिकता, अनुदारता, आदि अवगुणों से बचाकर हृदय छ. मा सामान तमना सहायना न की विशालता व गम्भीरता प्रदर्शन करें। ત'ના સંપાદક જે જણાવે છે તેને અમે હવાલો मापास छामे:--
यदि वास्तव में देखा जावे तो शत्रंजय के सम्ब
न्ध में पालीताना दरबार के साथ जो झगड़ा है वह " अपना नाक कटा कर दूसरे का अपशकुन
केवल श्वेताम्बरों के साथ का ही नहीं है। इस झगड़े __ करना ठीक नहीं।
का मुख्य प्रश्न यह है कि क्या एक रिसायत को यात्रियों गत तारीख ८ जुलाई के जैनगज़ट में संपादकीय
पर इस प्रकार कर लगा कर धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप अग्रलेखमें "श्वेताम्बरों के अत्याचारों के उत्तर स्वरूप हमें
करने का अधिकार है ? इसी कारण केवल दिगम्बर (दिगम्बरों को) पालीताना अवश्य जाना चाहिये" ऐसी अथवा श्वेताम्बर ही नहीं, वरन समस्त अजैनों की सलाह दी गई है। धर्मचंदजी जैन नामक किसी दिग- सहानुभूति भी जैनियों के साथ है। पालीताना दरबार म्बर भाईने एक मुद्रित लेख गज़ट को भेजा था, जो ने जो यात्री कर मकर्रर किया है. वह केवल श्वेतास्थानाभाव से गज़ट के उपरोक्त अंक में प्रकाशितम्बर समाज पर ही नहीं. दिगम्बरों पर भी किया है। नहीं हो सका, परन्तु गज़ट के विद्वान् संपादक महाशय दिगम्बर समाज जो पालीताना दरबार के खिलाफ खड़ा ने उस लेख का हृदय से अनुमोदन करते हुये लिखा हवा है और लड़ रहा है, वह श्वेताम्बर समाज के है कि 'श्वेताम्बरों के साथ किये जाने वाले उपकार साथ सहानुभूति या उसकी सहायता के लिये नहीं, को दिगम्बरों की हम वुद्धिमत्ता नहीं समझते...... बल्कि इसलिये कि पालीताना दरबार के लगाये हुये