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भगवान महावीर और उनका
आचार्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज
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आपत्ति से त्रसित मानव ही नहीं प्राणि मात्र का मानस क्रन्दित हो उठा। चारों ओर बलि और बलि, 'अझये स्वाड़ा का महामंत्र व्यास हो चूका, जीव का जीवित आनन्द तमसावृत हो चूम। अंधकार से घिरा संसार यथेष्ट मार्ग से च्युत होने लगा। जातिवाद और वर्णवाद के भूतने विस्तृत मस्तिष्क को संकुचित होने को बाध्य कर दिया। चारों ओर से करुण चित्कार हो उठी ।
एक दिव्य ज्योति जग उठी, मार्ग प्रशस्त कर दियाकंदित प्राणि मात्र को शान्ति प्राप्त करने के लिये, जीवन आनन्द पर छाये गहरे समान को हटाने के लिये उन्मार्ग से सन्मार्ग की सुखद सीडी पर समारूढ करने के. लिये, जातिवाद के भूत को भगा कर संतुलन खोये मस्तिष्क को विकरवर करने के लिये ।
आज २५०० वर्ष पूर्व भारतीय पुण्य वसुंधरा पर क्षमामूर्ति करुणावतार भगवान महावीरने तिमिरान्छन्न कल्याण पथ को पुनः आलोकित किया। विश्व के प्राणि मात्र के नाम सन्देश प्रसारित किया ।
जीवन जो तुम दे न सको तो लेने का अधिकार नहीं ।
तुमकों जिन्दा रहना है तो प्राणि मात्र को जिन्दा रख कर ही ऐसा नहीं कि तुम्हारे स्वार्थ के लिये दूसरों को दर-दर के बना दो। पेट भरने का सभी को अधिकार है, पेटी भरने का नहीं । यदि ऐसा किया तो अनधिकार कहलायेगा और उसका परिणाम भी तुम्हें ही भुगतना पडेगा । जिन्दगी प्राणिमात्रको प्रिय है और 'जीवो जीवस्य जीवनम्' के गगनभेदी निनाद से गूंजित कर दिया था विश्व को प्रभुश्री महावीरने ।
आज इतनी लम्बी अवधि के पश्चात भी प्रभु महावीर का संदेश वर्तमान समय की समस्याओं को सुलझाने के लिये उतना ही श्रेयस्कर सिद्ध होगा जितना कि उस समय था ।
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उपदेश
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आज शक्तिशाली राष्ट्र निर्बल को दबा कर अपने अधिनत्व में करना चाहता है । अपनी प्रभुसत्ता की एक से एक बढ़ कर संसार संहारक शस्त्रों का आविष्कार कर रहे हैं। आशा तृष्णा की ज्वाला को शान्त करने के लिये बलवान कमजोरों पर अपना अधिकार जमा रहे हैं। स्वार्थ की क्षुद्र भावना को ले कर अपने मूल्यवान समय को व्यर्थ में व्यतीत कर रहे हैं।
यह उन के ध्यान में अभी तक नहीं आया है कि जो कुछ भी प्राप्त करना है, तलवार से नहीं मुस्कान से प्राप्त करो। ऐसी शक्ति उत्पन्न कर दो कि जनता तुम्हारे चरणों में सर्वश्व साकर समर्पित कर दे अनिच्छा से कई निरपराध प्राणियों की आत्मा को क्लेश पहुंचा कर प्राप्त किया, वास्तव में पाया नहीं गंवाया है। क्योंकि मानवता परिचायक सर्वोपरी सिद्धान्त का हनन कर के पाया है।
आज इस बात के लिये प्रत्येक व्यक्ति को सोचना है, समझना है, और समझ कर के उसी का अनुपालन करना है कि अपना हित किस प्रकार के आचरणों में निहित है, और किस के अनुरासन से अपनी यथेन साधना सरलता से सम्पन्न की जा सकती है।
भगवान महावीर कह गये मानव ही नहीं अपितु प्राणिमात्र के हित को लक्ष्य कर के कि जिन्दे रहो जिन्दे रख कर के । सुखी बनो सुखी बना के, पेटभर प्राप्त करो परन्तु दूमरों के जीवन बाग को शुष्क बना कर के नहीं, हाथ में क्षमा का खड्ग हरदम रख कर चलो।
भगवान कह गये परन्तु विद्यमान काल में भी विश्व की समस्याओं को सुलझाने के लिये भगवान का दिया हुआ प शान्ति शस्त्र है। यह शान्ति शस्त्र समस्याओं की गुत्थियों को सुलझाने के लिये निश्चित रूप से पर्याप्त है।