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दीप ज लें ...
मुनि जयन्तविजय, मधुकर
सद्ज्ञान के घर घर दीप जलें,
भूले राही राह चलें, सद्ज्ञान के.
टकराते मानव से मानव कृत्य हैं करते जैसे दानव, कैसे हो शान्तिमय जीवन
कैसे दुःख व द्वन्द टलें, सद्ज्ञान के० भौतिकज्ञान है बढता जाये आध्यात्मिक नहीं को अपनाये मैत्रीयभाव कभी नहीं आये
जिस से सारे दुःख गल, सद्ज्ञान के०
आज हवा पश्चिम की जाती पूर्व जगत के दिल बहलाती सोचें तो वह दिल दहलाती
देश धर्म का प्रेम बढे, सद्ज्ञान के० नेता होंगे आज के बालक देश समाज की नैया चालक सोच समज लो इन के पालक __ इन को सच्चा ज्ञान मिले, सद्ज्ञान के०
सुशिक्षा की हो फुलवारी उस की फैले सुगंध प्यारी पुष्प उसी के हों मनहारी
मधुकर मन की चाह फले.