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किस की शक्ति पसंद है ? हाथी की या शेर की !
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नमः श्री वर्धमानाथ सर्व जीव हि सापेक्षवाद पृष्ठा अहिंसा मूर्तयते ॥ ॥ समय परिवर्तन हो रहा है। विशान भी करवट ले रहा है। आज सब कोई एकता संगठन व शान्ति की खोज में है।
तीन शताब्दी पहले वह समय था कि शाकाहार की रक्षा के लिये मांसाहार के प्रतिकार में उद्यत थे । आज यह समय है कि वनस्पति आहार की प्रतिष्ठा के लिए मांसाहार का विरोध हो रहा है ।
आप अपने मन को शान्त बनाकर, नेत्र बंद कर ध्यान से विचार करें तो आर को ज्ञात होगा कि मानव शरीर का पांच भूतों (तत्त्वों) से सीधा सम्बन्ध हैं । मानवी जीवन का शाकाहार से समीप सम्बन्ध है ।
मैं गतवर्ष में मेरठ की जैन धर्मशाला में बैठा था। सामने छत पर दो से पांच वर्ष आयुवाले ५ बालक खेल रहे थे। सत्र नीचे की चौक पर बने हुए कठहरे की छोटी दिवाल पर चक्कर काटते थे । तेजी से किन्तु १ बच्चा जिसकी आयु २ वर्ष होगी धीरे धीरे चलता था। तेजी से दौड़ने वाले चालक उसे ठीक सम्हाल कर बचाकर चले जाते थे। मैने यह अनुभव किया कि छोटे बच्चे के लिये उन बड़े बच्चों में पर्यास सहानुभूति है। मानना पड़ेगा कोमलता व अभि भावुकता असली मानवी जीवन है और यही देवी जीवन है किन्तु यही बड़ा होने पर एकदम बदल जाता है। दुष्ट, निर्दय, संहारलीला का नायक, प्राणी मात्र का विनाशक व मनुष्य जाति का शत्रु बन जाता है। दैवी जीवन को हटाकर राक्षसी जीवन को अपना लेता है, उत्तम मनुष्य भी दुष्ट बन जाय उसके कारण है दूषित आहार व दूषित वातावरण आदि । प्राणी मात्र में सत्त्व, रजस व तमस् ये तीन प्रकृतियां होती है जो आहार से बनती है। यह कहावत है कि “जैसा अन्न वैसा मन, जैसा पानी वैसी वाणी, जैसा वातावरण पैसा अनुसरण " ।
कुछ प्राणी भी ऐसें है कि जिनका नाम पाकर मनुष्य भी प्रसन्न होता है जैसे कि दियाज व भारत केसरी आदि आदि यह मानना पड़ेगा कि प्राणी संसार में हाथी व शेर ये बलवान प्राणी हैं।
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मुनिश्री दर्शनविजय जी
(त्रिपुटी)
राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने अपने यात्रा वर्णन में बतलाया था कि कहीं कहीं हाथीओ से भी कास्तकारी की जाती है। सब मनुष्य जानते हैं कि बैल, भैंस, खच्चर, कुत्ता, हिरन, ऊंट व हाथी ने गाड़ी में जोते जाते है। किन्तु शेर कहीं जोता जाता नहीं। सरकस में भी शायद ही ऐसा तमाशा होता होगा। हाथी से हल खिंचवाओ या गाडी सिचाओ वह सात्यिक वृति से अपने काम को सफल
नावेगा, किन्तु शेर ऐसा कार्य कर सकेगा नहीं क्योंकि उसमें साविक जीवन का अभाव है। हाथी में सात्यिक वृत्ति है और शेर में सात्विक वृत्ति नहीं है उसका कारण एक है शाकाहारी और दूसरा है मांसाहारी अब आप विचार कर लें कि आप को हाथी सा कार्यशील बनना है या शेर सा संहारक, निर्दय चनना है ।
आपको सात्यिक व कार्यशील बनना है तो मांसाहार का त्याग करना होगा। सम्राट अकबर ने दीने इलाही धर्म चलाया था वह उसे पुष्ट करने के लिए सब धर्मों का संतुलन कर रहा था। जगद्गुरु आचार्य भी विजयहीरसूरीजीने उसे उपदेश दिया कि संतुलन सात्विक वृत्ति से आधारित है और मांस व शराब छोड़ने से ही सात्विक जीवन बन पाता है। इसलिये शराब और मांस को छोड़ दो। सम्राट अकबर ने आपके उपदेश से वर्षभर में ६ माह के लिये मांसाहार छोड़ दिया। भारतवर्ष के इतिहास में मुसलमान राजदशामें इन्हें सर्वोत्तम बादशाह माना है। यह है मांसाहार छोड़ने का फल |
यह शरीर से सम्बन्धित अहिंसा की बात हुई। किन्तु धर्म प्रधान भारत में आध्यात्मिक, अहिंसा व सत्य की प्रधानता है। अतः मैं अहिंसा के विषय में कुछ बातें बताता हूं ।
पानी से भरे हुए तालाब में पत्थर फेंकने से पानी में एक के बाद एक चक्कर बनते है ये बैल कर किनारे तक पहुंचते है, विभिन्न धर्मों में अहिंसा के ऐसे चक्कर पाये जाते है। अपनी स्वार्थ रक्षा यह छोटा चक्कर है। कुटुम्ब व जाति की व गांव या शहर की रक्षा मध्यम चक्कर है । सारे संसार के जीवों की रक्षा यह बड़ा चक्कर है ।